Book Title: Madhya Bharat Ke Jain Tirth
Author(s): Prakashchandra Jain
Publisher: Keladevi Sumtiprasad Trust

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Page 56
________________ झोकों से व भगवान शीतलनाथ जी के दर्शन से तीर्थ यात्रियों का मन शीतल हो जाता है। यहां चारों ओर प्राकृतिक सौंदर्य की अनुपम छटा बिखरी नजर आती है। 19. तत्पश्चात् दर्शक आगे बढ़ता हुआ रसोइयन की मढ़िया स्थित जिनालय पहुँचता है; जहां भगवान पार्श्वनाथ की फणावली रहित प्रतिमा विराजमान है। 20-21. परिक्रमा-पथ से हटकर कुछ सीढ़ियां चढ़ने पर हम आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज के चरण-चिह्न वाली वेदी पर पहुँचते है। पास ही एक अन्य छत्री पर जो गुणदत्त मुनिराज की स्वाध्याय-स्थली है; उस पर उनके चरण-चिह्न अंकित हैं। श्रद्धालु यहां विनम्रता से उनके चरणों में अपना मस्तक रखता है। 22. निर्वाण गुफा- यह कितनी गहरी है यह तो नहीं कहा जा सकता; किन्तु निश्चित ही यह काफी गहरी होगी। इस गुफा में दर्शनार्थी प्रकाश की व्यवस्था कर काफी दूर तक आसानी से प्रवेश कर सकता है। कहा जाता है कि इसी गुफा से मुनिश्वर गुरुदत्त जी ने निर्वाण प्राप्त किया था। यहां चरण चिन्ह स्थित हैं। ____23. इसी गुफा के बाहर एक छोटे से कमरे में संग्रहालय स्थित है, जिसमें एक शिला प्रस्तर पर पूज्य गुरुदत्त मुनिराज के ऊपर आये उपसर्ग का चित्रण किया गया है। कुछ खंडित प्रतिमायें भी यहां रखी गई हैं। बाहर मुनिराज के चरण-चिह्न भी बने हुए हैं। __ 24. पार्श्वनाथ जिनालय- सं. 1615 में प्रतिष्ठित भगवान पार्श्वनाथ की फणावली रहित प्रतिमा जो पदमासन में है। इस जिनालय में विराजमान है। ___ 25. यह इस क्षेत्र का एक प्राचीन जिनालय है। जिसमें 1541 में प्रतिष्ठित भगवान नेमिनाथ की प्रतिमा विराजमान है इस जिनालय का दरवाजा काफी छोटा है। ___26. मेरु मंदिर- इस जिनालय में जीने चढ़ता हुआ तीन परिक्रमा पूर्ण कर श्रद्धालु मेरु के ऊपर विराजमान श्री जी के दर्शन करता है। इस जिनालय में 1543 में प्रतिष्ठित आठवें तीर्थंकर भगवान चन्द्रप्रभु की प्रतिमा विराजमान है। 27. अब श्रद्धालु मेरे मतानुसार इस क्षेत्र के सबसे प्राचीन स्थल पर पहुँचता है। जहां एक पाषाण निर्मित अद्भुत मानस्तंभ बना हुआ है। यह मानस्तंभ अनेक विशेषतायें लिए हुए है। प्रथम-यह अतिप्राचीन पाषाण निर्मित है। द्वितीयइसके चारों ओर ऊपर प्रत्येक दिशा में चौबीसी स्थित है; अर्थात् छोटी-छोटी 24 जिन-प्रतिमायें चारों ओर उकेरी गई हैं। तृतीय- इसके नीचे चारों दिशाओं में चार तीर्थंकर प्रतिमायें प्रत्येक दिशा में एक-एक बनी हुई है। इन चार में से तीन प्रतिमायें खड्गासन व एक पद्मासन में स्थित है। मानस्तंभ के चारों ओर प्रत्येक मध्य-भारत के जैन तीर्थ - 55

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