Book Title: Madhya Bharat Ke Jain Tirth
Author(s): Prakashchandra Jain
Publisher: Keladevi Sumtiprasad Trust

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Page 188
________________ मिथिलापुरी 19वें तीर्थंकर भगवान श्री मल्लिनाथ एवं 21वें तीर्थंकर श्री नेमिनाथ की जन्मभूमि पुराणों के अनुसार बंगदेश में स्थित थी । जिसका सही-सही पता अभी. तक नहीं चल पाया है। हाँ, कुछ जैन विद्वान वर्तमान नेपाल की सीमा पर स्थित जनकपुरी को ही मिथिलापुरी मानते हैं। यहां उपरोक्त तीर्थंकरों के गर्भ, जन्म व तप (दीक्षा) कल्याणक संपन्न हुये थे । इस नगरी की सही स्थिति ज्ञात करना शोध का विषय हैं। राजगृही यह वह प्रसिद्ध तीर्थ क्षेत्र है, जहां भगवान महावीर स्वामी का समवरण अनेक बार आया था । यहाँ के राजा श्रेणिक भगवान महावीर स्वामी के अनन्य भक्त थे । रानी चेलना ने राजा श्रेणिक को सही राह दिखाई थी । यह तीर्थ क्षेत्र कई किलोमीटर के क्षेत्र में विस्तृत है। यहां चार पहाड़ियों पर अतिप्राचीन दिगंबर जैन मंदिर स्थित है । यही वह पवित्र नगरी है; जहां 20वें तीर्थंकर भगवान श्री मुनिसुव्रतनाथ के गर्भ, जन्म व तप कल्याणक संपन्न हुये थे। यहां भगवान मुनिसुव्रतनाथ का विशाल व भव्य जिनालय है। एक स्तंभ (मानस्तंभनुमा आकृति) पर चारों ओर भगवान श्री मुनिसुव्रतनाथ की प्रतिमायें स्थित हैं। शहर में भी कुछ प्राचीन जिनालय स्थित हैं । यहीं विपुलाचल पर्वत पर भगवान महावीर स्वामी की प्रथम देशना हुई थी व उनका समवशरण आया था । इसी स्थल पर इस उपलक्ष्य में भगवान महावीर स्वामी के 2500 वें निर्वाण महोत्सव के अवसर पर एक विशाल भव्य व वास्तुशिल्प के लिये प्रसिद्ध जिनालय का निर्माण किया गया है। जिसके भीतर सीढ़ियों के मार्ग से ऊपर तक जाकर चारों दिशाओं में स्थित भगवान महावीर की प्रतिमा के दर्शन किये जाते हैं और जिसकी परिक्रमा तीर्थयात्री बड़े ही भक्तिभाव से किया करते हैं । शौरीपुर (बटेश्वर ) उ.प्र. के शिकोहाबाद से इस तीर्थ क्षेत्र की दूरी 14 किलोमीटर की है । उ.प्र. के ही इटावा से वाह होकर इस तीर्थ क्षेत्र की दूरी 50 किलोमीटर है। मध्यप्रदेश . के भिण्ड नगर से यह तीर्थ क्षेत्र 80 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है तथा आगरा से भी इस तीर्थ क्षेत्र की दूरी 80 किलोमीटर हैं । यह तीर्थ क्षेत्र यमुना नदी के किनारे अति रमणीक टीले जैसी भूमि पर स्थित है। यमुना किनारे ही हिंदुओं का पवित्र तीर्थ बटेश्वर स्थित है; जहाँ सौ से अधिक शिवलिंग स्थापित हैं । बटेश्वर मध्य-भारत के जैन तीर्थ ■ 187

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