Book Title: Madhya Bharat Ke Jain Tirth
Author(s): Prakashchandra Jain
Publisher: Keladevi Sumtiprasad Trust

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Page 215
________________ | नए प्रकाशन जैन.वाङ्मय रत्न कोश सं. आचार्य अशोक सहजानन्द (सैट-चार खंड) 3000 रु. ग्रंथराज वही है जो हमारी आत्मचेतना को जगा दे, जिसमें उच्च चिंतन हो और जीवन-सत्य का प्रकाश हो। जैन धर्म- दर्शन की वास्तविकता को समझने के लिए मात्र यही एक कोश पर्याप्त है। इसमें चारों वेदों का सार है। आप घर बैठे चारों धाम की यात्रा का आनन्द ले सकते हैं। गृहस्थ में रहते हुए भी संन्यास को यथार्थ रूप में अनुभव कर सकेंगे। हर पुस्तकालय के लिए आवश्यक रूप से संग्रहणीय ग्रंथराज। . जैन वाङ्मय में तीर्थकर एवं अन्य महापुरुष प्रो. पी.सी. जैन 400 रु. इस कृति में सृष्टिक्रम एवं काल विभाजन के वर्णन के साथ ही जैनधर्म की प्राचीनता को सिद्ध किया गया है। चौदह कुलकर, बारह चक्रवर्ती, बलभद्र, नारायण, प्रतिनारायण, रूद्र, नारद, कामदेव आदि के वर्णन के साथ चौबीस तीर्थकर एवं उनके माता-पिता का प्रमाणिक वर्णन है। एक संग्रहणीय एवं पठनीय कृति।। तीर्थ वंदन संग्रह सं. कुसुम जैन 400 रु. जैन तीर्थों के इतिहास से सम्बद्ध इस कृति में 40 स्वनामधन्य लेखकों के विशिष्ट साहित्यिक उल्लेख संकलित हैं। सभी लेखकों के विवरण भी ग्रंथ में उपलब्ध है। एक विशिष्ट संदर्भ ग्रंथ। महावीर कथा आचार्य अशोक सहजानन्द 200 रु. इस कृति में भगवान महावीर के जीवन की.बड़ी ही प्रामाणिक प्रस्तुति है। निर्वाण के पूर्व भगवान द्वारा दिये गये अन्तिम अमर संदेश को भी संकलित किया गया है। जन-जन की आस्था के केन्द्र चांदनपुर (श्री महावीरजी) का परिचय भी इसमें है। साथ ही भगवान की आराधना हेतु चालीसा, आरतियों, स्तोत्रों एवं भजनों का अनुपम संकलन भी। धनंजय नाममाला सं. आचार्य अशोक सहजानन्द 200 रु. ___'धनंजय नाममाला' कविराज श्री धनंजय कृत शब्दकोश है, जिसमें गागर में सागर भरा हुआ है। शब्दों को समझने के लिए तथा आगमों व अन्य ग्रंथों के रहस्य

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