Book Title: Madhya Bharat Ke Jain Tirth
Author(s): Prakashchandra Jain
Publisher: Keladevi Sumtiprasad Trust

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Page 192
________________ केवलज्ञान प्राप्ति के बाद समवशरण में विराजमान होकर प्रथम देशना दी थी। इस समवशरण के दर्शन से वह याद ताजी हो जाती है। 5. यह वेदिका सातफणी है जो अपने आप में अनूठी है व अलौकिक है। इस सुंदर वेदिका पर 7 फीट ऊँची भगवान पार्श्वनाथ की पद्मासन मुद्रा में प्रतिमा विराजमान हैं। इस प्रतिमा के ऊपर ग्यारह फणों वाली फणावली सुशोभित है। इस प्रतिमा के दर्शन करने से ऐसा आभास होता है मानों कलाकार ने संपूर्ण वीतरागता को पाषाण में उकेर कर साकार कर दिया है। इस वेदिका व छठी वेदिका के बीच मां पद्मावती देवी की मूर्ति प्रतिष्ठित की गई है। यह प्रतिमा मनमोहारी व इच्छापूर्ति करने वाली है। 6. इस वेदिका पर 10वीं सदी के पूर्व की तीन प्राचीन मनोहर प्रतिमायें विराजमान है। सभी तीनों प्रतिमायें पाषाण खण्ड़ों पर उत्कीर्ण हैं। बायीं ओर स्थित पाषाण खंड पर पंच बालयति की प्रतिमायें उत्कीर्ण हैं व उनके मध्य फणालंकृत भगवान पार्श्वनाथ की खड्गासन प्रतिमा बनी हुई है। परिकर के नीचे एक यक्ष व दो यक्षणिओं की प्रतिमायें भी बनी है। इनके ऊपर कायोत्सर्ग मुद्रा में 10 इंच आकार की तीर्थंकर प्रतिमायें उत्कीर्ण हैं। मध्य में स्थित फणावली युक्त प्रतिमा जो पद्मासन मुद्रा में है; भगवान पार्श्वनाथ की है। यह प्रतिमा 2.5 फीट ऊँची है। इस प्रतिमा के पादपीठ पर दो सिंह है। दायीं ओर स्थित शिलाखंड पर तीन फीट अवगाहना की भगवान ऋषभदेव की मूर्ति उत्कीर्ण है जिसके पार्श्व भागों में यक्ष-यक्षिणी बने हैं। भामंडल के दोनों ओर हाथी उत्कीर्ण हैं। इसके ऊपर इन्द्र हाथों में स्वर्ण कलश लिये क्षीरसागर के पावन जल से भगवान का अभिषेक करते नजर आते हैं। प्रतिमाओं के दर्शन कर मन मयूर प्रसन्न होकर नाचने लगता है। इस वेदिका पर 12 से अधिक और जिन-प्रतिमायें भी विराजमान हैं। 7. प्रथमतल पर स्थित जिनालय की यह अंतिम वेदिका है। इस कलापूर्ण वेदिका पर मध्य में सप्त फणावली युक्त श्यामवर्ण की भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिमा विराजमान है। यह प्रतिमा मिट्टी को पकाकर बनाई गई है। ऐसी प्रतिमायें देश में कुछेक स्थानों पर ही हैं। इस प्रतिमा के नीचे छोटी-छोटी चौबीस प्रतिमायें भी बनीं हैं; जो चौबीसी की प्रतीक हैं। प्रतिमा के वक्षस्थल पर श्रीवत्स का चिह्न सुशोभित हैं व कान कंधों को स्पर्श करते हैं। बाईं ओर भगवान पार्श्वनाथ की व प्राचीन प्रतिमा है; जो प्राचीन जिनालय में विराजमान थी व आतताइयों के आक्रमण के समय इस मूर्ति को लेकर मंदिर का माली कई दिनों तक कुयें में छिपा रहा था। प्रतिमा के सिर पर पंचमुखी फण हैं। इसमें छह अन्य तीर्थंकरों की प्रतिमायें भी उत्कीर्ण हैं। दायीं ओर भगवान पार्श्वनाथ की खड्गासन प्रतिमा फणावली सहित विराजमान है। यह प्रतिमा संगमरमर निर्मित है। इसी वेदिका पर भू-गर्भ से प्राप्त दो अत्यन्त प्राचीन मनोज्ञ व कलापूर्ण प्रतिमायें भी विराजमान हैं। जो इस क्षेत्र की प्राचीनता की प्रतीक हैं। प्रथम मूर्ति अष्टधातु से निर्मित है व इसमें पांच बालयति तीर्थंकरों की प्रतिमायें स्थित हैं। दूसरी प्रतिमा त्रितीर्थ है; मध्य-भारत के जैन तीर्थ - 191

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