Book Title: Madhya Bharat Ke Jain Tirth
Author(s): Prakashchandra Jain
Publisher: Keladevi Sumtiprasad Trust

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Page 191
________________ किले में पार्श्वनाथ नाम का टीला भी है; जहाँ से निकली प्राचीन जिन मूर्तियां लखनऊ व दिल्ली म्यूजियम की शोभा बढ़ा रहीं हैं । इस तीर्थ क्षेत्र पर यात्रियों को निम्नांकित जिनालयों के दर्शन कर पुण्यलाभ लेना चाहिये मूल विशाल पार्श्वनाथ जिनालय - इस विशाल जिनालय का निर्माण प्राचीन जिनालय के स्थान पर किया गया है । जो सं. 1978 का निर्मित है । यह सात शिखरों वाला भव्य व आकर्षक जिनालय भूतल पर न होकर प्रथमतल पर स्थित है। इस जिनालय में कलापूर्ण विभिन्न आकृतियों वाली 7 वेदिकायें हैं। 1. तिखाल वाले बाबा मूलनायक भगवान पार्श्वनाथ की वेदी- 10वीं सदी में निर्मित आले (तिखाला) से प्राप्त भगवान पार्श्वनाथ जी काले पाषाण से निर्मित प्रतिमा पद्मासन मुद्रा में वेदिका पर जिनालय के मूलनायक के रूप में विराजमान हैं । यह अतिसकारी प्रतिमा जन-जन के संकटों को दूर करने वाली है । यह प्रतिमा लगभग 1 फीट ऊँची है व प्रतिमा के सिर पर सातफण सुशोभित हैं । दर्शनमात्र से लोगों को असीम शान्ति का अनुभव होता है व श्रद्धालुओं को यहाँ से हटने का मन नहीं करता । वेदिका पर मूल प्रतिमा के आगे चरण-चिह्न स्थित हैं; जो एक बालुका पत्थर पर उत्कीर्ण हैं । चरणपादुका पर निम्न लेख उत्कीर्ण है - " श्री मूलसंघे नैद्य संवाये बलात्कारगणे कुन्दकुन्दाचार्यनार्थ अहिच्छत्र नगरे श्री श्री पार्श्वनाथर्चन चरण प्रतिष्ठिापित श्री रस्तु ।" इस शिलालेख से ये स्पष्ट है कि इस क्षेत्र पर परम पूज्य आचार्य श्री कुन्दकुन्द स्वामी तपस्या रत रहे हैं। यहां श्रद्धालु घंटों बैठकर प्रतिमा को निहारता रहता है; फिर भी उसके नयन तृप्त नहीं होते। यह वेदिका जिनालय के मुख्य द्वार के ठीक सामने स्थित हैं । 2. यह वेदिका उपरोक्त मूल वेदिका के बाईं ओर स्थित है। यह वेदिका तीन सुंदर हंसो व कमलाकार आकृति वाली है । इस सुंदर वेदिका पर अंतिम तीर्थंकर भगवान श्री महावीर स्वामी की 6 फीट ऊँची मनोहारी प्रतिमा विराजमान है । यह प्रतिमा चाकलेटी रंग वाली है। इस प्रतिमा की शान्त मुद्रा व वीतरागी छवि देखते बनती है। 3. उपरोक्त वेदी समान वेदिका पर भगवान श्री पार्श्वनाथ की श्यामवर्ण की 5 फीट ऊँची पद्मासन मुद्रा में मूर्ति विराजमान है । इस प्रतिमा के सिर पर 11 सर्पफणों की फंणावली है, जो अति आकर्षक है। यह वैदिका के दायीं ओर स्थित है । 4. आगे की वेदिका समवशरण रूप है। इस भव्य व आकर्षक समवशरण में शीर्ष भाग पर पार्श्वनाथ की चारों दिशाओं में मुख किये चार सुंदर पद्मासन मूर्तियां विराजमान हैं। ये प्रतिमायें अशोक वृक्ष के नीचे विराजमान हैं। रचना की प्रतिष्ठा सन् 1990 में आचार्य अजितसागर जी के सानिध्य में हुई थी। इस समवशरण में चार अति सुंदर विमान पुष्पवृष्टि करते दिखाई गये हैं। इस समवशरण का विशेष महत्व इसलिये है कि इसी क्षेत्र पर भगवान पार्श्वनाथ ने 190■ मध्य-भारत के जैन तीर्थ

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