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बहोरी बंद यह भी जबलपुर जिले के अन्तर्गत एक अतिशय क्षेत्र है; जो सिहोरा तहसील में आता है। जबलपुर से इस तीर्थ-क्षेत्र की दूरी 64 किलोमीटर है। यह तीर्थ-क्षेत्र जबलपुर-कटनी सड़क मार्ग पर स्थित है। यह तीर्थ-क्षेत्र सुंहार नदी के सुरम्य तट को छूती एक छोटी सी पहाड़ी के ऊपर स्थित है। पूर्व में ये कलचुरी व परिहार नरेशों का गढ़ रहा है। यहाँ गुप्तकाल से लेकर मध्यकाल के पुरावशेष बड़ी मात्रा में आसपास के क्षेत्रों में बिखरे पड़े हैं; जो यहाँ की प्राचीन समृद्धि की ओर इशारा करते हैं। __ इस क्षेत्र का प्रमुख आकर्षण यहाँ विराजमान भगवान शान्तिनाथ की अतिशयकारी मनोज्ञ प्रतिमा है, जो शक सं. 1010 की मानी जाती है। यद्यपि मूर्ति पर अंकित सं. 10 है, जो अस्पष्ट सा प्रतीत होता है। यह प्रतिमा स्लेटी वर्ण की कायोत्सर्ग मुद्रा में अवस्थित है, प्रतिमा की अवगाहरना 15.5 फीट है। प्रतिमा के दोनों पावों में पुष्पमाला लिये गगनचारी देवियां उत्कीर्ण हैं। पादपीठ के समीप पार्श्व में सौधर्म व ईशान इन्द्र खड़े हैं व श्रावक-श्राविकायें भक्ति मुद्रा में बैठी है। पामूल में प्रतीक चिह्न हिरण उत्कीर्ण है। . यहाँ भूमि के उत्खनन से अनेक जिन-प्रतिमायें प्राप्त हुई हैं। जिनमें से एक तीर्थंकर प्रतिमा 5.5 फीट ऊँची अतिमनोज्ञ व भव्य है. व उत्खनन से प्राप्त 15 अन्य प्राचीन प्रतिमायें भी यहाँ विराजमान है। एक मूर्ति भगवान नेमिनाथ की यक्षिणी देवी अम्बिका की भी यहाँ रखी है।
क्षेत्र पर अनेक नवीन जिनबिम्ब भी प्रतिष्ठापित किये गये हैं। गांव में एक मकान के निकट भी एक तीर्थंकर प्रतिमा रखी है। यहाँ से कुछ दूरी पर स्थित तालाब के किनारे प्राचीन जिनालयों के भग्नावशेष देखे जा सकते हैं।
इस क्षेत्र पर स्थित अतिशयकारी प्रतिमा को जो भगवान शान्तिनाथ की है। स्थानीय लोग खुनुआदेव के नाम से पुकारते हैं। यह प्रतिमा पहले लावारिस हालत में जंगल में पड़ी थी। कनिंघम महोदय ने इस मूर्ति को कुनुआदेव लिखा है। कुनुआदेव राजा गयकर्णदेव के पुत्र का नाम था। संभवतः बहोरी बंद उसकी जागीर थी; इसीलिये एक समाधि शिलालेख में यहां लिखा है महाराज पुत्र श्री कुनुआदेव। इस तीर्थ-क्षेत्र पर बड़ी संख्या में स्थानीय लोग मनौती मानने आते हैं।
मथ्य-भारत के जैन तीर्च- 123