Book Title: Madhya Bharat Ke Jain Tirth
Author(s): Prakashchandra Jain
Publisher: Keladevi Sumtiprasad Trust

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Page 180
________________ अलावा पुरातत्व विभाग के संरक्षण में बौद्ध से संबंधित अनेक पुरातत्वीय महत्व के स्मारकों के अवशेष स्थित हैं। जिनमें प्राचीन स्तूप, बौद्ध भिक्षुओं के रहने के आवास आदि हैं। श्रावस्ती में अनेक बौद्ध मंदिर है; जहाँ प्रतिदिन सैंकड़ों देशीविदेशी यात्री आते रहते हैं। बौद्ध धर्म के विकास के पूर्व श्रावस्ती जैन बस्ती थी। यहाँ भगवान संभवनाथ ने न केवल जन्म लिया था; बल्कि यहीं उन्होंने दीक्षा ग्रहण की थी; और केवलज्ञान भी उन्हें यहीं प्राप्त हुआ था। पुरातत्व विभाग के संरक्षण में नगर के परकोटे के बाहर एक अतिप्राचीन जिनालय के खंडहर है, जिसमें शिखर का आधा भाग भी शेष है। श्रावस्ती में वर्तमान में प्रमुख जिनालयों का विवरण इस प्रकार है___1. भगवान श्री संभवनाथ जिनालय- मुख्य सड़क पर एक विशाल परिसर में यह जिनालय स्थित है। सन् 1962 के पूर्व यहाँ एक प्राचीन जिनालय स्थित था; जो जीर्ण-शीर्ण अवस्था में था। यहाँ के वर्तमान पुजारी के परदादा आदि उसमें दर्शन पूजन किया करते थे। वर्तमान में इस जिनालय में भगवान संभवनाथ की 5 फीट से भी अधिक ऊँची भव्य व मनोहारी प्रतिमा पद्मासन मुद्रा में विराजमान है। इनके दर्शन मात्र से श्रद्धालुओं की मनोकामनायें पूर्ण होती हैं। वेदिका पर उक्त पाषाण प्रतिमा के अलावा भगवान श्री पार्श्वनाथ की एक अन्य पाषाण प्रतिमा भी विराजमान है। अष्टधातु की चार अन्य प्रतिमायें भी वेदिका पर विराजमान है वेदिका पर ही भगवान संभवनाथ के तीन चरण-चिह्न भी स्थित हैं। वेदिका के पीछे की दीवाल पर बहुत ही सुंदर ढंग से भगवान संभवनाथ के जन्म के पूर्व उनकी माता को दिखे 16 स्वप्न भी चित्रित किय गये हैं। 2. दूसरा जिनालय भी इसी परिसर में स्थित है; जो बर्मन शैली में बनाया गया है। यह नवीन जिनालय देखने में अति आकर्षक व अन्य दिगंबर जिनालयों से बिल्कुल अलग है। जिनालय के शीर्ष भाग पर (शिखर) चारों दिशाओं में 4 तीर्थंकर प्रतिमायें विराजमान हैं। इस विशाल जिनालय में सामने तीन वेदिकायें स्थित हैं। मध्य की वेदिका पर भगवान संभवनाथ की आकर्षक व प्रभावोत्पादक प्रतिमा विराजमान है। यह प्रतिमा व जिनालय की शेष अधिकांश प्रतिमायें संगमरमर से निर्मित हैं। यह प्रतिमा लगभग 4-4.5 फीट ऊँची पद्मासन मुद्रा में है। चार अन्य प्रतिमायें भी इसी वेदिका पर विराजमान है। इस वेदिका के बायें हाथ की ओर भगवान भरत व दायें हाथ की ओर भगवान बाहुबली की कायोत्सर्ग मुद्रा में लगभग 6 फुट ऊँची आकर्षक प्रतिमायें विराजमान है। इसी जिनालय में शेष तीन ओर दीवालों पर छोटी-छोटी वेदिकायें बनाकर चौबीसी का निर्माण किया गया है। इस चौबीसी में वर्तमान काल के चौबीस तीर्थंकरों की मूर्तियों अलग-अलग विराजमान है। प्रत्येक जिनबिम्ब की ऊँचाई 1.5 फीट एक समान है व सभी पद्मासन मुद्रा में आसीन है। ___ 3. अतिप्राचीन जिनालय-शहर के प्राचीन परकोटे के बाहर किन्तु उपरोक्त मध्य-भारत के जैन तीर्थ- 179

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