Book Title: Madhya Bharat Ke Jain Tirth
Author(s): Prakashchandra Jain
Publisher: Keladevi Sumtiprasad Trust

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Page 178
________________ छत्री कटरा मुहल्ला में मुख्य सड़क पर स्थित है। यहाँ पास में ही एक श्वेताम्बर जिनालय भी है । यहाँ पर परिसर में चार वेदिकाओं पर श्री जी विराजमान हैं । प्रथम मुख्य जिनालय में भगवान ऋषभनाथ, अजितनाथ व श्री सुमतिनाथ की भव्य व आर्कषक मूर्तियां विराजमान है। ये सभी प्रतिमायें लगभग समान अवगाहना की 2.5 फीट के आसपास हैं । भगवान ऋषभदेव की प्रतिमा की अवगाहना लगभग 3 फीट है । दूसरी वेदिका में जो आंगन के बायीं ओर स्थित है। भगवान श्री पार्श्वनाथ, पद्मप्रभु व चन्द्रप्रभु की प्रतिमायें विराजमान हैं । इन प्रतिमाओं की ऊँचाई क्रमशः 2, 1.5 व 1 फीट है। सभी प्रतिमायें पद्मासन मुद्रा में विराजमान हैं व चित्त को आकर्षित करने वाली है । तीसरी वेदिका आंगन (प्रांगण) के मध्य में स्थित है । यहाँ खड्गासन में स्थित भगवान ऋषभदेव व उनके पुत्रों भरत व बाहुबली भगवान की प्रतिमायें स्थापित हैं । भगवान ऋषभदेव की प्रतिमा लगभग 8 फीट व शेष दो प्रतिमायें लगभग 6 फीट ऊँची भव्य व आकर्षक है । इस अंतिम जिनालय में जो आंगन के दायीं ओर स्थित है, प्राचीन प्रतिमायें विराजमान हैं, इनमें कुछ प्रतिमाओं पर प्रशस्तियां व स्थापना की तिथि अंकित नहीं है । जिससे यह प्रतीत होता है। कि यह अतिप्राचीन है। एक मूर्ति पर सं. 1548 अंकित है । ये सभी प्रतिमायें 1-2.5 फीट ऊँची पद्मासन मुद्रा में विराजमान जिनके दर्शन पूजन से श्रद्धालुओं के पाप धुल सकते हैं । 1 आंगन के मध्य में भगवान सुमतिनाथ के चरण चिह्न एक छत्री में स्थित हैं । यही भगवान सुमतिनाथ की जन्मभूमि मानी जाती है । 5. जन्मभूमि भगवान श्री अनन्तनाथ - जैनधर्म के 14वें तीर्थंकर भगवान श्री अनन्तनाथ जी का जन्म यहीं हुआ था । यह अतिसुंदर स्थान सरयू नदी के तट पर स्थित है। यहाँ आकर श्रद्धालुओं की सारी थकान दूर हो जाती हैं व उनका मन-मयूर खुशी से झूम उठता है । अनुपम प्राकृतिक सौन्दर्य के मध्य स्थित यह स्थान अति सुंदर है । इसके एक ओर सुंदर विशाल बगीचा है; तो दूसरी ओर कल-कल नाद करती सरयू नदी है । इस स्थान की प्राचीनता यहाँ स्थित अनेक ऋषियों व तीर्थंकरों के प्राचीन चरणों से स्वतः सिद्ध है । यहां एक विशाल चबूतरे पर स्थित छत्री में भगवान अनन्तनाथ जी के प्राचीन चरण कमल स्थित हैं । यहीं छत्री के बायीं ओर एक कक्ष में सप्तऋषिओं के चरण-चिन्ह स्थित हैं; जो अतिप्राचीन हैं। मूल छत्री के दायीं ओर एक अन्य कक्ष में भगवान ऋषभदेव की दो पुत्रियों ब्राह्मी व सुंदरी के चरण - चिह्न स्थित हैं। संभवतः आर्यिका दीक्षा के बाद यहीं इन दोनों ने घोर तप कर स्त्री पर्याय का हमेशा के लिये छेदन किया था। इतना ही नहीं, इसके आगे एक अन्य कक्ष में 12 तीर्थंकरों व 7 अन्य के भी प्राचीन चरण-चिह्न स्थित हैं। पास में स्थित एक सरकारी उद्यान में 21 फीट ऊँची एक भव्य व मनोरम प्रतिमा पद्मासन में भगवान ऋषभदेव की विराजमान है। इस प्रतिमा के ऊपर छाया नहीं है व खुले स्थान में विराजमान है। मध्य-भारत के जैन तीर्थ 177

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