Book Title: Madhya Bharat Ke Jain Tirth
Author(s): Prakashchandra Jain
Publisher: Keladevi Sumtiprasad Trust

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Page 176
________________ तीर्थंकरों की जन्म-भूमियाँ जन्म भूमि बन्दै जो कोई, नरक पशुगति कभी न होई। . बार-बार बन्दै जो कोई, निश्चय नर-सुर गति ही होई।। 1. अयोध्या- यह प्राचीनतम तीर्थ-क्षेत्र है। वर्तमान उ.प्र. राज्य के पूर्वी भाग में फैजाबाद नगर से इसकी दूरी मात्र 7 किलोमीटर है। अयोध्या रेल्वे स्टेशन भी है एवं यहाँ अन्तर्राज्यीय बस अड्डा भी है। लखनऊ से अयोध्या की दूरी लगभग 135 किलोमीटर है। इलाहाबाद, वाराणसी व गोरखपुर से अयोध्या की दूरी क्रमशः 160, 192 व 130 किलोमीटर है। फैजाबाद से अयोध्या के लिये प्रतिसमय टैक्सियां मिलती है। यहाँ तीर्थ यात्रियों को रुकने के लिये रायगंज बड़ी मूर्ति जिनालय में विशाल धर्मशाला है। इसके अलावा सुमतिनाथ जिनालय में भी तीर्थयात्रियों के रुकने की सुविधा है। जैन धर्मावलंबियों के लिये यह तीर्थ-क्षेत्र विशेष महत्व रखता है, क्योंकि इस धरा पर न केवल प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव ने जन्म लिया था। बल्कि यह तीर्थ-क्षेत्र अन्य चार तीर्थंकरों की जन्मभूमि भी है। चतुर्थकाल के अन्त में अयोध्या नगरी में प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव जिन्हें आदिनाथ के नाम से भी जाना जाता है; ने जन्म लिया था। भगवान आदिनाथ के जन्म के 9 माह पूर्व से ही उनके महलों में दैवीय रत्न वृष्टि होती रही थी। जन्म के समय तो सारी अयोध्या नगरी में ही दैवीय रत्न वृष्टि हुई थी। ऐसा ही अन्य चार तीर्थंकरों के जन्म के समय भी इस नगरी में हुआ था। तीर्थ यात्रियों को रायगंज स्थित बड़ी मूर्ति जिनालय से रिक्शा या टैक्सी कर अयोध्या स्थित पांचों तीर्थंकरों की जन्मभूमि के दर्शन कर पुण्य अर्जित करना चाहिये। अयोध्या नगरी के विषय में यह धारणा है कि अनादि काल से यहाँ सभी 24 तीर्थंकरों का जन्म होता आया है। काल का परिवर्तन होने पर भी हुंडावसर्पिणी काल के कारण 5 तीर्थंकरों का जन्म हुआ है। काल का परिवर्तन होने पर भी नये सिरे से स्वास्तिक चिह्न से विभूषित यह भूमि स्वतः प्रकट हो जाती थी। इसी पावन वसुंधरा पर भगवान आदिनाथ के अलावा श्री अजितनाथ, श्री अभिनंदन नाथ, श्री सुमतिनाथ और श्री अनन्तनाथ भगवान ने जन्म लिया। यही वह पावन भूमि है, जहाँ भगवान बाहुबली एवं प्रथम चक्रवर्ती भगवान भरत का जन्म भी हुआ था। ज्ञातव्य है कि इन्हीं भरत के नाम पर इस देश का नाम भारतवर्ष पड़ा। इस नगरी में राष्ट्रनिर्माता, रामराज्य के संस्थापक मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान रामचन्द्र जी का जन्म भी हुआ था। अयोध्या को साकेत, विनीता, कौशल, हरिण्या, जया नंदनी, सत्या, चिन्मया, अनुज्झा, औध, राजिता, अपराजिता, रामपुरी, प्रथमपुरी, अवधर आदि नामों से भी जाना जाता रहा है। पहले जहाँ भगवान आदिनाथ का प्राचीन मंदिर था; वहाँ मस्जिद बनवाई गई थी; किन्तु तभी दिल्ली निवासी दीवान कुलभूषण श्री केसरी सिंह जैन ने ... मध्य-भारत के जैन तीर्थ - 175

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