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4. रात्रि में देवकृत गायन-वादन का रसास्वादन लिया जा सकता है। ऐसा यहां के निवासियों का कहना है।
जिनालय : दो जिनालयों को छोड़ संपूर्ण जिनालय एक परिसर में स्थित है; परिसर में ही कुछ खंडित मूर्तियां भी रखीं हैं, जिनमें से दो प्रतिमाओं के नीचे लिखी प्रशस्ति को साफ पढ़ा जा सकता है। एक का स्थापना काल सं. 1000 व दूसरी का सं. 1680 अंकित है। ___ 1. क्षेत्र स्थित प्रथम जिनालय एक बड़े कक्ष में स्थित है; जिसकी दीवारों पर अनेक दरारें आ गई हैं। इस जिनालय में लगभग 12 फीट ऊँची अत्यन्त प्राचीन एवं मनोज्ञ प्रतिमा खड्गासन मुद्रा में आसीन है। यह भगवान आदिनाथ की अत्यन्त मनभावन प्रतिमा है व सं. 1000 के पूर्व की प्रतिष्ठित है। यह जिनालय बिना शिखर का है।
2. से 6. इसी प्रांगण में एक विशाल जिनालय के सामने पांच मड़िया स्थित हैं; ये सभी जिनालय (मड़ियां) गुंबदाकार शिखर वाले हैं व अत्यन्त जीर्ण-शीर्ण हालत में हैं। इन पृथक-पृथक स्थित पांच जिनालयों में लगभग 5 फीट ऊँची खड्गासन मुद्रा में अतिप्राचीन जिनबिम्ब स्थापित हैं। इनमें से एक जिनालय में तीसरे तीर्थंकर भगवान संभवनाथ की प्रतिमा आसीन है। दूसरे जिनालय में भी संभवनाथ की प्रतिमा स्थापित है। तीसरे जिनालय में भव्य व मनोहारी भगवान शान्तिनाथ की प्रतिमा आसीन है। चौथे जिनालय में 8वें तीर्थंकर भगवान चन्द्रप्रभु की आलीशान प्रतिमा विराजमान है। अंतिम व पांचवी मड़िया में भगवान नेमिनाथ की प्रतिमा आसीन है। प्रतिमाओं के नीचे लिखी प्रशस्ति कुछ हद तक पठनीय है। लेखक ने दो प्रतिमाओं के नीचे लिखी प्रशिस्तयों में स्थापना वर्ष सं. 1622 पढ़ा है। किन्तु देखने से व स्थापत्य कला से ऐसा प्रतीत होता है कि ये सभी जिनालय एक साथ निर्मित हुए होंगे।
7. इन्हीं पांच मड़ियों के सामने क्षेत्र का प्राचीन व सबसे ऊँचा शिखरबंद जिनालय स्थित है। जिनालय के बाहर लगभग 15-20 फीट का कलात्मक वराण्डा बना हुआ है। भव्य व आकर्षक दरवाजे से होकर श्रद्धालु जिनालय में प्रवेश करता है। इस जिनालय में 16वें तीर्थंकर भगवान शान्तिनाथ की प्रतिमा विराजमान है। यह लगभग 18 फीट ऊँची भव्य जिन-प्रतिमा है। यद्यपि मूर्ति के नीचे लिखी प्रशस्ति में स्थापना काल स्पष्ट नहीं है; किन्तु अस्पष्ट अंकों से ऐसा विदित होता है कि यह क्षेत्र की सबसे प्राचीन प्रतिमा है; जिसका स्थापना काल सं. 1000 के आसपास का होना चाहिये।
8. मुख्य परिसर से लगभग 400 मीटर की दूरी पर स्थित एक पहाड़ी पर
मध्य-भारत के जैन तीर्थ - 89