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4. सुपार्श्वनाथ जिनालय- परिक्रमा-पथ का यह प्रथम जिनालय है; जिसमें सातवें तीर्थंकर भगवान सुपार्श्वनाथ की अतिमनोज्ञ भव्य प्रतिमा विराजमान है। इसे कांच का मंदिर भी कहते हैं, क्योंकि इस जिनालय के अंदर रंगीन कांच से मनमोहक कारीगरी की गई है। इस जिनालय में सं. 1938 में प्रतिष्ठित लगभग 2.5 फीट अवगाहना की पद्मासन प्रतिमा आसीन है। ___5. चन्द्रप्रभु जिनालय- इस जिनालय में सं. 2021 में प्रतिष्ठित भगवान चन्द्रप्रभु की श्वेत वर्ण की लगभग पौने दो फीट ऊँची भव्य पद्मासन प्रतिमा विराजमान है।
6. पार्श्वनाथ जिनालय- इस जिनालय में तेइसवें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ की पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। यह भव्य प्रतिमा लगभग 3 फीट ऊँची सहन फणावली युक्त सं. 1918 की प्रतिष्ठित है।
7. आदिनाथ जिनालय- भगवान आदिनाथ की कृष्ण वर्ण प्रतिमा पद्मासन मुद्रा में इस जिनालय में विराजमान है। यह प्रतिमा लगभग 3.5 फीट ऊँची सं. 1918 में प्रतिष्ठित है।
8. अजितनाथ जिनालय- दूसरे तीर्थंकर भगवान अजितनाथ की लगभग 2 फीट ऊँची मूगियां वर्ण की यह पद्मासन प्रतिमा भी 1918 में प्रतिष्ठित है।
9. आदिनाथ जिनालय- यह जिनालय भी 1918 में निर्मित है, जिसमें लगभग 2 फीट अवगाहना की पद्मासन प्रतिमा आसीन है। उपरोक्त चारों जिनालय एक ही समय के हैं। ___10-12. यह एक विशाल जिनालय है; जिसमें अलग-अलग वेदिकाओं पर भगवान पार्श्वनाथ, भगवान चन्द्रप्रभु, भगवान पार्श्वनाथ व भगवान आदिनाथ जी के अलावा एक अन्य तीर्थंकर प्रतिमा भी विराजमान है। भगवान पार्श्वनाथ व आदिनाथ की मूर्तियां 16वीं शताब्दी की व अतिमनोज्ञ है। ये सं. 1542-48 में प्रतिष्ठित हैं।
13. चन्द्रप्रभु छतरी- इस छतरी में आठवें तीर्थंकर भगवान चन्द्रप्रभु जी के चरण-चिह्न अंकित हैं
14. चन्द्रप्रभु जिनालय- इस जिनालय में चन्द्रप्रभु भगवान की अतिमनोज्ञ व मनभावन प्रतिमा विरामान है।
15-17. इसके आगे दर्शनार्थी आगे बढ़ता हुआ आचार्य श्री शान्तिसागर जी, मुनि श्री वीरसागर जी व मुनि श्री शिवसागर की वेदियों में स्थित उनके चरण-चिह्नों पर अपने श्रद्धा-सुमन अर्पित करता हुआ दीक्षा-वन के पास से गुजरता है।
___18. परिक्रमा-पथ के मध्य में 10वें तीर्थंकर भगवान शीतलनाथ जी का छोटा किन्तु भव्य जिनालय स्थित है। यहां पहुंचकर शीतल मंद-पवन के 54 - मध्य-भारत के जैन तीर्थ