Book Title: Lonkashah Mat Samarthan Author(s): Ratanlal Doshi Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh View full book textPage 7
________________ [6] वास्तव में भगवान् की आज्ञा के अनुसार संयम का पालन करना बहुत ही कठिन है। अतएव सभी लोगों के लिए सर्व विरति साधुपना अंगीकार करना संभव नहीं । इसलिए जो संसारी जीव सर्व विरति साधुपना स्वीकार नहीं कर सकते, उनके लिए प्रभु ने तिरने का दूसरा मार्ग श्रावकधर्म भी बतला दिया। ठाणं सूत्र के दूसरे ठाणे में बतलाया गया है। चरितधम्मे दुविहे पण्णत्ते तंजहा । अगारचरितधमे चेव, अणगारचरितधम्मे चेव ॥ मोक्ष के शाश्वत सुखों को प्राप्त करने के लिए प्रभु ने दो तरह के धर्म का प्रतिपादन किया है। मुनि (अनगार) धर्म और गृहस्थ ( श्रावक) धर्म । - प्रभु महावीर ने दो प्रकार के धर्म के पालन का मात्र प्रतिपादन ही नहीं दिया। बल्कि उनके पालन करने की विधि-विधानों का स्पष्ट उल्लेख भी अपनी वाणी रूप आगम में कर दिया गृहस्थ ( श्रावक ) धर्म पालन की संक्षिप्त व्याख्या आवश्यक सूत्र में इस प्रकार दी गई। पंचण्हमणुव्वयाणं, तिवहं गुणव्वयाणं । चउन्हं सिक्खावयाणं, बारस विहस्स ॥ इसके अलावा सूत्रकृतांग सूत्र एवं उपासक दशांग सूत्र आदि सूत्रों में भी श्रावक धर्म के पालन के विधि-विधानों का निरुपण किया गया है। मुनि (अनगार) धर्म के पालन करने के विधि-विधानों का निरूपण तो आचारांग, सूत्रकृतांग, ठाणं, समवायांग, भगवती, दशवैकालिक, उत्तराध्ययन आदि सूत्रों में बहुत ही विस्तार से किया गया है । यदि आगमों का अध्ययन-अनुशीलन किया जाय तो श्रमण Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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