Book Title: Laghustotra Ratnakar
Author(s): Hemendrasagar
Publisher: Buddhisagarsuri Jain Gyanmandir

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Page 215
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१७४) सत्सङ्गीतमिदं शिलाष्टकवरं कोटिप्रभावं मुदा, . श्रीमत्सूर्यजिताम्धिना गुणवतां मोदाय निर्मायिना ॥१०॥ ॥ श्रीजिनवरस्तोत्रम् ॥ जिनवर ! तव मृतिर्मामके मानसाम्जे, निरयगतिहरं ते नामधेयं मुखे मे । अनिशमतुलमक्या मस्तकं त्वत्पदान्जे, भवजलनिधिमग्नं रच मामार्त्तवन्धो! ॥१॥ कुरु कुरु मम शान्ति मावनम्रस्य नाथ ! सृजतु सृजतु लोके शान्तदृष्टिप्रभावम् । भवतु भवतु सर्वेः स्वार्थसिद्धस्त्वदीयो जयतु जयतु कीर्चिस्त्वत्पदाम्भोजभाजाम् ॥२॥ जिनवर ! तव मूर्तिध्यानतो व्यग्रचेतः, समुपगतमहो मे शान्तभावं समग्रम् । अतिकरुणकटाक्षः कृतार्थ कुरुष्व, त्वदभिमतपदाब्जादन्यदेवं न याचे ॥३॥ तपतु तपतु लोकस्तीवभावेन तापैः, पततु पततु शृङ्गात्पर्वतस्योच्चसंस्थात । चदतु वदतु वादैः श्लिष्टभावैश्च भावै स्त्वहमसकृदमेयां मृतिमाराधयिष्ये ॥४॥ For Private And Personal Use Only

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