Book Title: Laghustotra Ratnakar
Author(s): Hemendrasagar
Publisher: Buddhisagarsuri Jain Gyanmandir

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Page 242
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥४ ॥ (२०१) तत्वार्थिनां तत्त्वनिधानभूतं, मोक्षार्थिनां मोक्षनिकेतनप्रदम् विद्वेषकारागृहसंस्थितानां, दुर्दर्शनीय स्फुटचक्षुषामपि । सल्यानतो मीलितलोचनानां, श्रीशान्तिनाथं सुलभं नमाम्यहम् विस्तारिणा सर्वत एव तेजसा, तमस्तति मोहमयीं जनानाम् । विभेदयन्तं सदयं गतान्तकं, जिनेश्वरं शान्तिमहं नमामि प्रभो ! न ते पादसरोजयोः पुरा, नतस्ततोऽहं भवदुःखमापम् । नाऽहं पुनस्त्वचरणप्रसादतो भवाटवीं संप्रति दृष्टुमर्हः अवाप्य ये मानवतां सदाशया, लब्ध्याऽग्रगा मानवतां त्वदीयम् । पादारविन्दं प्रणमन्ति मोक्षदं पुनर्भवं यान्ति न ते कृपालो! प्रभो ! त्वदीयस्मरणाद्विमुखा भवोदधिं तर्तुमिमे कथं तमाः । ॥ ७॥ For Private And Personal Use Only

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