Book Title: Laghustotra Ratnakar
Author(s): Hemendrasagar
Publisher: Buddhisagarsuri Jain Gyanmandir
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॥४
॥
(२०१) तत्वार्थिनां तत्त्वनिधानभूतं,
मोक्षार्थिनां मोक्षनिकेतनप्रदम् विद्वेषकारागृहसंस्थितानां,
दुर्दर्शनीय स्फुटचक्षुषामपि । सल्यानतो मीलितलोचनानां,
श्रीशान्तिनाथं सुलभं नमाम्यहम् विस्तारिणा सर्वत एव तेजसा,
तमस्तति मोहमयीं जनानाम् । विभेदयन्तं सदयं गतान्तकं,
जिनेश्वरं शान्तिमहं नमामि प्रभो ! न ते पादसरोजयोः पुरा,
नतस्ततोऽहं भवदुःखमापम् । नाऽहं पुनस्त्वचरणप्रसादतो
भवाटवीं संप्रति दृष्टुमर्हः अवाप्य ये मानवतां सदाशया,
लब्ध्याऽग्रगा मानवतां त्वदीयम् । पादारविन्दं प्रणमन्ति मोक्षदं
पुनर्भवं यान्ति न ते कृपालो! प्रभो ! त्वदीयस्मरणाद्विमुखा
भवोदधिं तर्तुमिमे कथं तमाः ।
॥ ७॥
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