Book Title: Laghustotra Ratnakar
Author(s): Hemendrasagar
Publisher: Buddhisagarsuri Jain Gyanmandir

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Page 253
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २१२) जिनाऽऽगमं प्रमाण तः प्रमाण यन्तमुन्नतं, . . सदोन्नति विवर्द्धयन्तमाईती जनोचिताम् । कुमार्गसन्तति विनाशयन्तमङ्गिनां समां, नमामि मूरिपुङ्गवं मुनीशबुद्धिसागरम् ॥५॥ समस्तमानमत्तमानवव्रज निजश्रिया, सुबुद्धिवृद्धिजातया नितान्तमोदमूलया । पवित्रयन्तमन्वहं. कलङ्कहीनताजुषं, नमामि मूरिपुङ्गवं मुनीशबुद्धिसागरम् ॥ ६ ॥ विवेक के किनादनादितोत्तमात्मधारणं, धराधरेन्द्रसन्ततिप्रपूजितक्रमाम्बुजम् । निरस्तहिंस्रहिंसनप्रथं प्रकृष्टबोधतोनमामि सूरिपुङ्गवं मुनीशधुद्धिसागरम् ॥७॥ विचिन्त्य चिन्तनीयमात्मतत्त्वमात्ममन्दिरे, नितान्तशर्मसम्पदा समाश्रितं श्रितोदयम् । विशिष्टशिष्टमानवा नमन्ति यत्पदाम्बुजं, नमामि सूरिपुङ्ग मुनीन्द्रबुद्धिसागरम् ॥८॥ प्रसिद्धसिद्धिदायकं महासमृद्धिसेवधि, नरामरेन्द्रशुद्धिदानदक्षतायुतं सदा । हेमदेवताधिपाऽब्धिगुम्फित मनोहरं, पठन्ति ये जनासुखाऽधिमाप्नुवन्ति शाश्वतम् ॥९॥ For Private And Personal Use Only

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