Book Title: Laghustotra Ratnakar
Author(s): Hemendrasagar
Publisher: Buddhisagarsuri Jain Gyanmandir

View full book text
Previous | Next

Page 221
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १८० ) श्रीतेजः सागरमुनिप्रणीतंश्रीउपर्सगहरस्तोत्रपादपूर्ति रूपं श्रीपार्श्वस्तोत्रम् उवसग्गहरं पासं, वंदित्र नंदिश गुणाण आवासं : महसुरसूरि सूरिं, थोर्स दोसं विमुत्तणं जहमहमहिम महग्धं, पासं वंदामि कम्मघणमुक्कं तह महगुरुकमलं, थोसामि सुसामि भिच्चुव्व संसारसारभू, कामं नामं धरंति निश्रहिश्रए । विसहरविसनिन्नासं, धन्ना पुन्ना लहंति सुहं सारयससिसंकासं, वयणं नयणुप्पलेहिं वरभासं । कुणइ कुकम्मविणासं, मंगलकल्ला आवासं विसहरफुलिंगमंतं, कुग्गहगहग हिश्रविहिपुब्वत्तं । कुवलय कुवलयकंतं, मुहं सुहं दिसउ अचंतं गुरुगुरुगुणमणिमालं, कंठे धारेइ जो सया मणुश्रो । सो सुहगो दुहगो गो, सिवं वरह हरइ दुहदाहं गुरुपायं गुरुपायं गयरायगई हु नमइ गयराअं । तस्सगहरोगमारी, - सुदुट्ठकुट्ठा न पहवंति भूवाल भालमउड-द्वियमणिमालामऊहसुइपायं । जो नमइ तस्स निश्चं, दुट्ठजरा जंति उवसामं चिउ दूरे मंतो, तुह संतो मज्झ तुज्झ मतीर | सव्त्रम पुव्वंसिज्झइ, झिज्झर पावं भवारावं For Private And Personal Use Only ॥ १ ॥ ॥ २ ॥ 11 3 11 ॥ ४ ॥ ॥ ५ ॥ ॥ ६ । ॥ ७ ॥ 11 < 11 11 3 11.

Loading...

Page Navigation
1 ... 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270