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( १८० )
श्रीतेजः सागरमुनिप्रणीतंश्रीउपर्सगहरस्तोत्रपादपूर्ति रूपं श्रीपार्श्वस्तोत्रम्
उवसग्गहरं पासं, वंदित्र नंदिश गुणाण आवासं : महसुरसूरि सूरिं, थोर्स दोसं विमुत्तणं जहमहमहिम महग्धं, पासं वंदामि कम्मघणमुक्कं तह महगुरुकमलं, थोसामि सुसामि भिच्चुव्व संसारसारभू, कामं नामं धरंति निश्रहिश्रए । विसहरविसनिन्नासं, धन्ना पुन्ना लहंति सुहं सारयससिसंकासं, वयणं नयणुप्पलेहिं वरभासं । कुणइ कुकम्मविणासं, मंगलकल्ला आवासं विसहरफुलिंगमंतं, कुग्गहगहग हिश्रविहिपुब्वत्तं । कुवलय कुवलयकंतं, मुहं सुहं दिसउ अचंतं गुरुगुरुगुणमणिमालं, कंठे धारेइ जो सया मणुश्रो । सो सुहगो दुहगो गो, सिवं वरह हरइ दुहदाहं गुरुपायं गुरुपायं गयरायगई हु नमइ गयराअं । तस्सगहरोगमारी, - सुदुट्ठकुट्ठा न पहवंति भूवाल भालमउड-द्वियमणिमालामऊहसुइपायं । जो नमइ तस्स निश्चं, दुट्ठजरा जंति उवसामं चिउ दूरे मंतो, तुह संतो मज्झ तुज्झ मतीर | सव्त्रम पुव्वंसिज्झइ, झिज्झर पावं भवारावं
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