Book Title: Laghustotra Ratnakar
Author(s): Hemendrasagar
Publisher: Buddhisagarsuri Jain Gyanmandir
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(१७१) करसरोरुहखेलनचशला, तव विभाति वरा जपमालिका । श्रुतपयोनिधिमध्यविकस्वरो,-ज्वलतरङ्गकलाग्रहसाग्रहा। द्विरदकेसरिमारिभुजङ्गमा-सहनतस्करराजरूहां भयम्। तव गुणावलिगानतरङ्गिणां, न भविनां भवति श्रुतदेवते।।९। ॐ ह्रीं क्ली ब्लू ततः श्री तदनु हसकलडी मथोएँ नमोऽन्ते । लक्षं साक्षाजपेद् यः करसमत्रिधिना सत्तपा ब्रह्मचारी। निर्यान्ती चन्द्रविम्बात् कलयति मनसा त्वां जगञ्चन्द्रिकामा। सोऽत्यर्थं वह्निकुण्डे विहितघृतहुतिः स्याद् दशांशेन ।
विद्वान् ॥ १० ॥ (स्रग्धरावृत्तम्.) रेरे लक्षण-काव्य-नाटक-कथाचम्पूसमालोकने, क्वायासं वितनोषि बालिश ! मुधा किं नम्रवक्ताम्बुजम् । भक्त्याऽऽराधय मन्त्रराजमहसाऽनेनानिशं भारती, ये न त्वं कवितावितानसविताद्वैतप्रबुद्धायसे ॥११॥ चश्चचन्द्रमुखी प्रसिद्धमहिमा स्वाच्छन्धराज्यप्रदा, नायासेन सुरासुरेश्वरगणै रभ्यर्चिता भक्तितः । देवी संस्तुतवैभवा मलयजालेपाझरङ्गद्युतिः, सा मां पातु सरस्वती भगवती त्रैलोक्यसंजीविनी ॥१२॥. स्तवनमेतदनेकगुणान्वितं, पठति यो भविकामनाःप्रगे। स सहसा मधुरैर्वचनामृत-नृपगणानपि रञ्जयति स्फुटम् ।१३।.
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