Book Title: Kya Mrutyu Abhishap Hai Author(s): Parmatmaprakash Bharilla Publisher: Pandit Todarmal Smarak Trust View full book textPage 8
________________ चि. परमात्मप्रकाश ने पहले निबंध में मृत्यु संबंधी उक्त सत्य पर बड़ी ही संजीदगी से गहन विचार किया है, अनेकानेक युक्तियाँ प्रस्तुत कर विषयवस्तु को स्पष्ट करने का सफल प्रयास किया है। ___ क्या विज्ञान धर्म की कसौटी हो सकता है?' इस दूसरे निबंध में भी उन्होंने यह समझाने का सार्थक प्रयास किया है कि धर्म भी आत्मा की शोध-खोज का प्राचीनतम व्यवस्थित विज्ञान है, वीतराग-विज्ञान है; क्योंकि वह वीतरागता की प्राप्ति कैसे होती है - इस पर व्यवस्थित प्रकाश डालता है। स्वयं में परिपूर्ण उक्त विज्ञान को इस आधुनिक भौतिक विज्ञान की कसौटी पर कसना; जो अभी स्वयं अपूर्ण है और प्रतिदिन अपनी ही बात को गलत सिद्ध करता प्रतीत होता है; कहाँ तक न्यायसंगत है? • जिस विज्ञान ने आज इतनी विनाशक सामग्री तैयार कर दी है कि यदि उसके शतांश का भी उपयोग हो जावे, प्रयोग हो जावे तो सम्पूर्ण विश्व नेस्तनाबूद हो सकता है; उस विज्ञान को तो धर्म के अंकुश की आवश्यकता है; अन्यथा वह विश्व को विनाश की विकराल ज्वाला में धकेल सकता है। जिन लोगों ने ऐसे शस्त्रों का निर्माण किया है; वे लोग तो यही चाहेंगे कि उनके बनाये शस्त्रों का उपयोग हो; क्योंकि उन्हें उसी से प्रतिष्ठा प्राप्त होगी। सत्ता के मदं में मदोन्मत्त सत्ताधारी लोगों के पास भी इतना विवेक कहाँ है कि वे इस विश्व को विनाश से बचा सकें। अहिंसा धर्म और अहिंसक धर्मात्मा ही इस काम को बखूबी कर सकते हैं। अतः इस बात की आवश्यकता से इन्कार नहीं किया जा सकता कि इस भौतिक-विज्ञान पर वीतराग-विज्ञान का अंकुश आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य है। दोनों ही आ ख गंभीर विचार मंथन के उपरान्त लिखे गये हैं; संबंधित विषय में किये गये गंभीर चिन्तन को सतर्क प्रस्तुत करते हैं। अतः पूरी गंभीरता के साथ मूलतः पठनीय है। २५ नवम्बर, २००८ ई. - डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल, जयपुर - क्या मृत्यु महोत्सव अभिशाप है ?/६Page Navigation
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