Book Title: Kya Mrutyu Abhishap Hai Author(s): Parmatmaprakash Bharilla Publisher: Pandit Todarmal Smarak TrustPage 48
________________ हमारा दृष्टिकोण नकारात्मक है। नकारात्मक से मेरा तात्पर्य सिर्फ यह नहीं है कि हमारा मंतव्य धर्म से विपरीत है, बल्कि धर्म हमारी दृष्टि में उपेक्षित है, हमारे पास धर्म के बारे में सोचने का वक्त ही नहीं है। धर्म क्या है, क्या कहता है, उसका हमारे जीवन में क्या स्थान है और क्या स्थान होना चाहिए – इस सबके बारे में हमारा कोई सोच ही नहीं है। धर्म हमारे जीवन का एक अंग है या आभूषण, हमें इसका निर्णय करना होगा। __क्या फर्क है अंग और आभूषण में ? अंग वह होता है, जिसे अपने से पृथक् नहीं किया जा सकता है और आभूषण वह है, जिसे हम धारण करें या न करें – यह हम पर निर्भर करता है। ___एक बात और भी है कि शरीर के अंग हमारे लिए उपयोगी होते हैं और आभूषण मात्र दिखावटी। शरीर के अंग शरीर पर भार नहीं होते; पर आभूषण शरीर पर भार होते हैं। आभूषण बदले जा सकते हैं, पर सामान्यतः अंग नहीं। . आभूषणों के लिए कीमत चुकानी पड़ती है, अंगों के लिए नहीं। आभूषणों को त्यागा जा सकता है, अंगों को नहीं। या यूं कहिये कि हम चाहें तो आभूषण धारण करें, न चाहे तो न करें; पर अंगों के बारे में ऐसा नहीं है। धर्म हमारे लिए आभूषणों की भांति दिखावटी, बोझिल व अनुपयोगी बाहरी वस्तु नहीं, वरन् धर्म जीवन का अंग है, धर्म ही जीवन है। वस्तु का स्वभाव धर्म है व उस वस्तुस्वभाव का अध्ययन करने वाले, उसकी व्याख्या करने वाले ज्ञान-विज्ञान का नाम है वीतरागविज्ञान। इसप्रकार धर्म व धर्म की व्याख्या करने वाला विज्ञान, वीतरागविज्ञान भी भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान आदि की ही तरह विज्ञान की अनेकों विधाओं में से एक विधा है और इसका अध्ययन करने वाले साधक हैं वैज्ञानिक, अध्यात्मविज्ञानी और इनकी शोध-खोज का विषय - क्या मृत्यु महोत्सव अभिशाप है ?/४६Page Navigation
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