Book Title: Kya Mrutyu Abhishap Hai
Author(s): Parmatmaprakash Bharilla
Publisher: Pandit Todarmal Smarak Trust

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Page 61
________________ अन्यथा नहीं; पर भाई साहब विज्ञान की बातें भी तो आपने मात्र सुनी या पढ़ी ही हैं, आपने कहाँ स्वयं उनका अनुभव किया है ? कहाँ स्वयं प्रयोग किया है । इस बात से क्या फर्क पड़ता है कि धर्म की एक बात जो हमने सुनी है, वह १००० वर्ष पहिले कही गई थी या कि विज्ञान की जो बात हमने सुनी पढी है, वह १०-२० या ५०-१०० वर्ष पहले कही गई है। हमारे लिए तो दोनों ही बातें सुनी - पढी हुई हैं, स्वयं अनुभूत तो नहीं हैंन ? तब धर्म क्यों अविश्वसनीय हो गया व विज्ञान क्यों विश्वसनीय बन गया ? रही बात यह कि हमने देखा तो नहीं है, देखने की जरूरत भी नहीं समझी; क्योंकि हमको अविश्वास भी नहीं हुआ; पर आवश्यकता पड़ने पर विज्ञान हमें अपनी बातें प्रयोगशाला में साबित करके दिखा तो सकता है न, इसका हमें भरोसा है। धन्य हैं आप ! आपको, शराबी, व्यसनी व स्वार्थी, अल्प ज्ञानी, राग-द्वेषी वैज्ञानिकों की बातों पर तो भरोसा है और सदाचारी, उच्च चरित्रवान, तपस्वी, निस्वार्थ, सर्वज्ञ, वीतरागी व्यक्तित्वों, सन्त- महन्तों की सतर्क बातों पर भरोसा नहीं । रही बात प्रयोगशाला में साबित करने की, तो हाँ मैं कहता हूँ कि धार्मिक सिद्धान्त भी प्रयोगशाला में साबित किये जा सकते हैं। अरे आत्मा की प्रयोगशालाओं में अनुभव करके ही उनकी व्याख्या की गई है। पर धर्म के प्रयोग के लिए कहाँ हैं आपके पास उस स्तर के प्रयास, उस स्तर का समर्पण, उस स्तर की ज्वलंत लालसा, उस स्तर की शिक्षा; जैसी कि विज्ञान के लिए है । अरे ! विज्ञान की छोटी-मोटी उपलब्धियाँ; उनके पीछे किये गये विशाल समर्पण का परिणाम है। उसकी तुलना में धर्म के लिए क्या किया हमने ? यदि इसी स्तर के प्रयास समर्पण भाव से आत्मा के क्षेत्र में किये क्या विज्ञान धर्म की कसौटी हो सकता है ?/५९

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