Book Title: Kya Mrutyu Abhishap Hai Author(s): Parmatmaprakash Bharilla Publisher: Pandit Todarmal Smarak TrustPage 59
________________ यूं भी वैज्ञानिक विधि यह है कि वे यदि किसी प्रचलित मान्यता का खण्डन करें तो अपने उस खण्डन को साबित करने के लिए ठोस सबूत दें व यदि वह सत्य नहीं तो यथार्थ क्या है, उसकी स्थापना करें, पर न तो आजतक विज्ञान आत्मा के अस्तित्व को, उसकी अनादि - अनन्तता को व पुनर्जन्म को ठोस प्रमाणों के आधार पर नकार पाया है और न ही आत्मा के अस्तित्व व पुनर्जन्म जैसे तथ्यों की पुर्नव्याख्या दे पाया है; तब इस संबंध में विज्ञान का कोई भी कथन क्या महत्त्व रखता है ? विज्ञान विषय से संबंधित किसी व्यक्ति के कोई भी अविचारित, गैर जिम्मेदारना कथन को वैज्ञानिक मान्यता नहीं कहा जा सकता। उक्त मान्यताओं का वैज्ञानिक ढंग के विधिवत् विवेचन किया जाना चाहिए, तब वह वैज्ञानिक मान्यता कहला सकती है। सबसे महत्त्वपूर्ण तथ्य तो यह है कि दार्शनिक मान्यताओं की तो बात ही जाने दीजिये, वह तो विज्ञान का कार्यक्षेत्र ही नहीं है; परन्तु विज्ञान स्वयं अपने कार्यक्षेत्र में भी अभी शैशवास्था में ही हैं, निरन्तर वृद्धिंगत है, निरन्तर प्रगति कर रहा है। अभी विज्ञान अपने आप में संपूर्ण नहीं है, आधा-अधूरा है; अभी तक उसने पुद्गल के क्षेत्र में भी मात्र कुछ ही प्रश्नों के उत्तर खोजे हैं, अभी तो अनेकों (अनन्त) सवालों के उत्तर उसे खोजने हैं। ऐसे एक आधे-अधूरे व्यक्ति या संकाय के हाथों अपने आपको, अपनी समृद्ध दार्शनिक मान्यताओं को सौंप देना कितना विवेक सम्मत होगा ? क्या यह बन्दर के हाथ में तलवार देकर अपनी गर्दन भी प्रस्तुत कर देने जैसा हास्यास्पद व अविवेक भरा कार्य नहीं है ? उक्त सभी दृष्टिकोणों से विचार करने पर हम पायेंगे कि हमारे लिए यही उचित है कि विज्ञान को उसका कार्य करने दें व हम अपने कार्य में लगे रहें । आत्मा-परमात्मा संबंधी अपनी धार्मिक व दार्शनिक मान्यताओं के समर्थन के लिए हमें आधुनिक विज्ञान की कोई आवश्यकता नहीं है। क्या विज्ञान धर्म की कसौटी हो सकता है ?/५७Page Navigation
1 ... 57 58 59 60 61 62 63 64