Book Title: Kya Mrutyu Abhishap Hai
Author(s): Parmatmaprakash Bharilla
Publisher: Pandit Todarmal Smarak Trust

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Page 58
________________ वस्तुतः तो पूरा का पूरा मानव समाज भी कहाँ उनके चिन्तन का विषय है। अरे वे तो अपनी खोजों के बल पर अन्य मानव समूहों का भी शोषण ही करना चाहते हैं, उन्हें अपना गुलाम बनाना चाहते हैं, उनसे अपने आर्थिक व राजनैतिक स्वार्थों की पूर्ति करना चाहते हैं। उक्त सभी तथ्यों को ध्यान में रखकर ही मैं यह कहने का साहस कर सका हूँ कि विज्ञान का दृष्टिकोण संकुचित है। एक और दृष्टि से भी विज्ञान का दृष्टिकोण संकुचित कहा जावेगा कि विज्ञान का लक्ष्य मात्र भौतिक साधन जुटाना है, भौतिक उपलब्धियाँ ही उसकी उपलब्धियाँ हैं। आध्यात्मिक उपलब्धियाँ उसका लक्ष्य नहीं हैं, उसका विषय नहीं है। अध्यात्म की ओर विज्ञान का ध्यान ही नहीं है। भौतिक सुख व उपलब्धियाँ मात्र सुखाभास हैं व तात्कालिक महत्त्व की वस्तुयें हैं, त्रैकालिक महत्त्व की वस्तु तो अध्यात्म व आध्यात्मिक उपलब्धियाँ हैं। यदि धर्म किसी पूर्व मान्यता का खण्डन करता तो यह जानने व प्रमाणित करने के बाद करता है कि पूर्व प्रचलित विभिन्न मान्यतायें क्याक्या हैं व उनका आधार क्या है ? धार्मिक-दार्शनिक आस्थाओं का खण्डन करने से पूर्व किस वैज्ञानिक ने जगत में प्रचलित तत्संबंधित विभिन्न दार्शनिक मान्यताओं का अध्ययन किया है ? बिना जाने समझे ही यह खण्डन कैसा ? यह भी स्पष्ट है कि अधिकतम वैज्ञानिक पूर्वाग्रहों से ग्रस्त हैं, भावनाओं द्वारा संचालित हैं व अपने हानि-लाभ को ध्यान में रखकर अत्यन्त दवाब में कार्य करते हैं। यदि उनके जीवन क्रम पर दृष्टि डाली जावे तो हम पायेंगे कि उनका आचरण, व्यवहार, चरित्र व खान-पान संबंधी सात्विकतायें भी उस स्तर की नहीं है; जिनके रहते, उन्हें किसी आराध्य पद पर सुशोभित किया जा सके। क्या मृत्यु महोत्सव अभिशाप है ? /५६

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