Book Title: Kya Mrutyu Abhishap Hai Author(s): Parmatmaprakash Bharilla Publisher: Pandit Todarmal Smarak TrustPage 56
________________ एक और महत्त्वपूर्ण बात यह है कि हमारे वैज्ञानिक सर्वज्ञ नहीं, अल्पज्ञ हैं; वे सबकुछ एक साथ व सबकुछ सच्चा नहीं जानते; वे सम्पूर्ण सत्य के मात्र एक पक्ष के ही विशेषज्ञ होते हैं, ऐसी स्थिति में उनकी दृष्टि से सत्य के अन्य अनेकों पक्ष ओझल ही रह जाते हैं, तब वे एक वस्तु की सम्पूर्ण व सही व्याख्या किस तरह कर सकते हैं ? उनकी अपनी सीमायें हैं व उनसे इस तरह की अपेक्षा रखना हमारा ही अविवेक है। . भौतिक विज्ञान सम्पूर्णत: विकसित ज्ञान नहीं है, वह अभी तक वृद्धिंगत शिशु है व उसके कोमल कमजोर कन्धों पर आत्मा और परमात्मा पर टिप्पणी करने का इतना बड़ा बोझ डाल देना हमारी ओर से विज्ञान पर ज्यादती ही कही जावेगी। मानवता के नाते तो वैज्ञानिक भी साधारण मनुष्य ही हैं, वे भी हीनता या उच्चता की भावना से ग्रस्त होते हैं, हो सकते हैं; और ये भावनायें स्वयं उन्हें सत्य का साक्षात्कार नहीं होने देती, तब वे औरों का मार्गदर्शन कैसे करेंगे ? हमारे वे सन्त, महात्मा व साधक; जिन्होंने आत्मसाधना के बल पर अपनी समस्त कमजोरियों पर विजय पाकर, वह सूक्ष्मता व शक्ति प्राप्त कर ली है, जो आत्मा को जानने व पहिचानने के लिए आवश्यक है; वे वस्तुतः ही आत्मा के विषय में आधिकारिक टिप्पणी करने के अधिकारी हैं व वे ही हमारे लिए अनुकरणीय भी हैं और उनके द्वारा अपनाई गई विधि आत्म अन्वेषण की विधि है, यदि वैज्ञानिकों को आत्मान्वेषण करना हैं तो उन्हें भी यही सब करना होगा। यदि मैं कहूँ तो चौंक मत जाइयेगा, पर यह यथार्थ है कि विज्ञान व वैज्ञानिकों का दृष्टिकोण एक संकुचित दृष्टिकोण है; क्योंकि विज्ञान की प्राथमिकतायें सार्वभौमिक एवं सार्वकालिक नहीं हैं। विज्ञान का लक्ष्य कुछ सीमित लोगों, एक सीमित वर्ग को लाभ पहुँचाना है, प्राणिमात्र - क्या मत्यु महोत्सव अभिशाप है ?/५४ -Page Navigation
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