Book Title: Kya Mrutyu Abhishap Hai Author(s): Parmatmaprakash Bharilla Publisher: Pandit Todarmal Smarak TrustPage 51
________________ हर बार यही तो कहा गया था, पर हर बार का वह अन्तिम सत्य कुछ काल भी तो न टिक सका, अब भी कौन कह सकता है कि आज का यह अन्तिम सत्य इसी विज्ञान के द्वारा ही कल फिर गलत साबित नहीं कर दिया जायेगा और हम हैं कि ऐसे इस विज्ञान के भरोसे अपने इस आत्मा के बजूद (Existance) को ही दाव पर लगा देना चाहते हैं। अरे विज्ञान भी किसी एक व्यक्ति या एक मान्यता या एक विधा का नाम नहीं है। इस जगत में अनेकों वैज्ञानिक हैं व विज्ञान की अनेकों विधायें (Faculties) हैं। प्रत्येक विधा के ज्ञाता अलग-अलग लोग हैं व वे अपने विषय के विशेषज्ञ होने के बावजूद अन्य विषय के बारे में शून्य होते हैं व एक विधा के वैज्ञानिक दूसरी विधा के वैज्ञानिकों के निष्कर्षों से सहमत हों – यह भी जरूरी नहीं। उनके बीच भी कई गहरे मतभेद पला करते हैं। अरे एक ही विधा के वैज्ञानिकों के बीच भी एक ही विषय पर अनेकों राय हुआ करती हैं। तब वे प्रामाणिक कैसे हो सकते हैं ? ऐसी स्थिति में हम अपने आत्मा व अपने धर्म को उन अज्ञानियों की चौखट पर ठोकरें खाने के लिए छोड़ दें - यह कैसा अविवेक है ? - एक बात और - जगत में हम साधारण से साधारण मामले में भी न्याय पाने के लिये किसी के पास जाते हैं तो हम सुनिश्चित कर लेना चाहते हैं कि - १. न्यायाधीश बनने वाला व्यक्ति बुद्धि से इतना सक्षम हो कि जो न्याय-अन्याय का फैसला कर सके। . २. न्यायाधीश विचाराधीन विषय का विद्वान हो, ताकि सत्य व असत्य का निर्णय कर सके। ३. न्यायाधीश किसी पूर्वाग्रह से ग्रस्त न हो। ४. न्यायाधीश का हित-अहित संबद्ध मामले से जुड़ा हुआ न हो। ५. न्यायाधीश संबद्ध मामले से भावनात्मक रूप से जुड़ा हुआ न हो। - क्या विज्ञान धर्म की कसौटी हो सकता है ?/४९Page Navigation
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