Book Title: Kya Mrutyu Abhishap Hai Author(s): Parmatmaprakash Bharilla Publisher: Pandit Todarmal Smarak TrustPage 47
________________ आज हम विज्ञान से इतने आक्रान्त हो गए हैं कि वही हमारे लिए सबकुछ हो गया है और कोई कुछ भी न रहा, उस पर तुर्रा यह है कि हम कुछ और तो सुनना-जानना ही नहीं चाहते; पर विज्ञान को भी जानते समझते नहीं, बस यूं ही उसके कायल हुए जा रहे हैं, उसके चमत्कारों के बोझ तले दबे जा रहे हैं। मैं पूछता हूँ कि क्या है विज्ञान एवं विज्ञान का चमत्कार? आखिर चमत्कार कहते किसे हैं ? चमत्कृत होना मात्र अपने अज्ञान की स्वीकृति है और कुछ भी नहीं। हम जो नहीं जानते, वह होता है तो हमें लगता है कि चमत्कार हो गया। वह जो हुआ है, जिससे हम चमत्कृत हैं; क्या वह होने योग्य नहीं था, क्या वह हो नहीं सकता था ? यदि हो नहीं सकता था, तो हो कैसे गया ? यदि हो ही गया है तो यह कहना कहाँ तक सही है कि ऐसा हो नहीं सकता? यह तो हमारा ही अज्ञान था, जो कहता था कि ऐसा हो ही नहीं सकता; इसलिए हो जाने पर हम चमत्कृत होने लगते हैं। इसीलिए मैं कहता हूँ कि चमत्कृत होना मात्र अपने अज्ञान की स्वीकृति है और कुछ भी नहीं। ___ जो होता है, उस रूप परिणमित होना वस्तु का स्वभाव है; इसलिए वह होता है। यदि वह वस्तुस्वभाव नहीं होता तो वह हो ही नहीं सकता था। यदि वस्तु का स्वभाव है तो फिर चमत्कार कैसा? इसलिए मैं कहता हूँ कि विज्ञान से चमत्कृत होने की, उससे आक्रान्त होने की कोई आवश्यकता नहीं है और न ही उसकी उपेक्षा करने, उसे भुला देने की आवश्यकता है। आवश्यकता है उसे सही परिप्रेक्ष्य में समझने की। एक ओर हम विज्ञान से अभिभूत हैं और दूसरी ओर धर्म के प्रति - क्या विज्ञान धर्म की कसौटी हो सकता है ?/४५. -Page Navigation
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