Book Title: Kya Mrutyu Abhishap Hai
Author(s): Parmatmaprakash Bharilla
Publisher: Pandit Todarmal Smarak Trust

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Page 30
________________ किसी अन्य घटना को । हम चाहें या न चाहें; जन्म-मरण को स्वीकार करना हमारी नियति है, मजबूरी है; जबतक कि हम जन्म-मरण का अभाव न कर लें। इस सबके बावजूद मृत्यु को टाल सकने की क्षमता प्राप्त करने के दिवास्वप्न से शायद ही कोई अछूता रहा होगा। जीवन के किसी न किसी मोड़ पर हम सभी के मन में यह लालसा उत्पन्न अवश्य हुई होगी। यद्यपि मृत्यु को टालना व मेटना किसी के लिए भी सम्भव नहीं है; तथापि यदि ऐसा हो सके तो वह किस परिस्थिति को जन्म देगी - यह देखना अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है । हममें से अधिकतर लोग अपने समस्त दायित्वों का निर्वाह कर चुकने के बाद, अपना सक्रिय जीवन खत्म हो चुकने के बाद भी अनेकों वर्षों तक जीवित रहते हैं और हम सभी बड़ी अच्छी तरह जानते हैं कि वह जीवन कैसा होता है। जब हम सक्रिय जीवन से अवकाश ग्रहण करते हैं, तब प्रारम्भ में तो एक तीव्र जिजीविषा जन्म लेती है कि 'अब तक तो दायित्वों के निर्वाह में लगा रहा, पर अब मैं जीवन जिऊँगा, भरपूर; अपने तरीके से' पर अन्ततः जीवन की ओर हमारी यह दौड़, मृगमरीचिका ही साबित होती है, वह तृप्ति को नहीं तृषा को ही जन्म देती है। कुछ ही समय में हमें अहसास होने लगता है कि हम अप्रासंगिक (Irrelevant) हो चले हैं, अब हमारे बने रहने की कोई उपयोगिता नहीं रह गई है, अब किसी को हमारी आवश्यकता नहीं रही है और अनुभव यह कहता है कि जैसे-जैसे यह जीवनकाल लम्बा होता जाता है, हम अप्रसांगिक से अवांक्षित (Unwanted) होने लगते हैं। पहले हम मात्र अनुपयोगी (Useless) हुए थे, अब बोझ बनने लगते हैं और पहले हमारी मौत अपेक्षित (Expected) हुआ करती थी, अब चाहत (desire ) बनने लगती है । क्या मृत्यु महोत्सव अभिशाप है ?/२८.

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