Book Title: Kya Mrutyu Abhishap Hai Author(s): Parmatmaprakash Bharilla Publisher: Pandit Todarmal Smarak TrustPage 33
________________ उक्त परिपेक्ष्य में अब उसे लौटने की जल्दी है, इसका अव्यक्त अर्थ क्या है ? यही न, कि कब मरीज की शीघ्र मृत्यु हो व वह अपने अनुष्ठान सम्पन्न कर जल्दी से जल्दी लौट सके। इस क्रम में ज्यों-ज्यों दिन खिंचते जाते हैं, सभी की व्यग्रता बढती जाती है। ___ मैं पूछता हूँ कि किस बात की व्यग्रता है यह ? आखिर आप चाहते क्या हैं ? क्या मरीज की शीघ्र मौत ? ___ अन्ततः यदि कई दिनों तक कुछ भी होता न दिखे तो फिर निराश होकर लम्बी सांसे लेता हुआ वह बोल उठता है कि 'अब क्या करूँ, सोचता हूँ कुछ दिनों के लिए घर हो ही आऊँ, यदि और कोई डेवलपमेन्ट हो तो बताना।' अरे भई ! किस बात का अफसोस कर रहा है? अपने सम्बन्धी के न मरने का ? और अब कौन-सा डेवलपमेन्ट चाहता है ? मृत्यु का समाचार ही न ? और अन्ततः एक दिन वह लौट ही जाता है। मान लीजिए एक बार फिर ऐसा ही प्रसंग उपस्थित हो जावे और वह फिर दौड़ा चला आवे, तब भी मृत्यु न हो और वह फिर लौट जावे। तीसरी बार फिर इसीप्रकार का प्रसंग उपस्थित होने पर अनायास ही उसके मुख से निकल जाता है 'कितनी बार दौड़-दौड़कर आऊँ ? कुछ होता जाता तो है नहीं।' ___अब कोई उस भले आदमी से पूछे कि आखिर तू क्या चाहता है, क्या होना-जाना चाहता है ? तुझे क्या इष्ट है ? अपने सम्बन्धी का स्वास्थ्य या उसकी मौत ? पर यदि मरीज स्वस्थ हो जाता है, तब तो इसे कुछ हुआ सा ही नहीं लगता, अपनी दौड़-भाग व्यर्थ दिखाई देने लगती है, उसका अफसोस होने लगता है। मानो इसकी प्रासंगिकता मात्र मृत्यु की स्थिति में ही हो, जीवन में तो इसकी प्रामाणिकता है ही नहीं। - क्या मृत्यु महोत्सव अभिशाप है १/४१Page Navigation
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