Book Title: Kya Mrutyu Abhishap Hai Author(s): Parmatmaprakash Bharilla Publisher: Pandit Todarmal Smarak TrustPage 43
________________ हम कभी भी मौत की ओर से उदासीन नहीं हो पायेंगे, हम मौत के प्रति तटस्थ (Neutral) नहीं हो पायेंगे। अपनी उक्त अवस्था के विपरीत हम मृत्यु से आतंकित न रहें, भयभीत न रहें; वरन् मृत्यु के लिए अपने आपको सदा प्रस्तुत रखें। यहाँ मैं यह कतई नहीं कहना चाहता कि हम मृत्यु के लिए लालायित रहें । इसके लिए आवश्यक है कि हमारे पास दूरगामी योजना तो हो, पर वह इस क्षणिक मनुष्य पर्याय मात्र के लिए नहीं, वरन् त्रिकाली ध्रुव भगवान आत्मा के लिए हो; क्योंकि यह मनुष्य पर्याय कुछ समय बाद न रहेगी, तब भी मेरी योजना अधूरी नहीं रहेगी; क्योंकि अनादि-अनन्त यह आत्मा, कोई अन्य नहीं, वरन् मैं स्वयं हूँ; जो सदाकाल रहेगा, अपनी उस योजना को क्रियान्वित करने के लिए। वर्तमान में तो हम सिर्फ वह करें, जो मात्र आज के लिए, मात्र अभी के लिए आवश्यक है व पर्याप्त है। अगले दिन, अगले पल यदि जीवन रहेगा तो उसका उपक्रम, तत्सम्बन्धित प्रक्रियाएँ स्वतः सम्पन्न हो ही जावेंगी। यदि जीवन न रहा तो श्वासोच्छवास की आवश्यकता ही नहीं रहेगी और यदि जीवन बना रहा तो श्वास भी स्वत: ही चलती रहेगी। इसप्रकार कभी भी हमारे पास अगले पल के लिए ऐसा कोई कमिटमेंट नहीं होगा, जिसके लिए हमें जीवित रहना आवश्यक हो । कमिटमेंट पूरा करने के लिए जीवित रहना आवश्यक नहीं होगा, हाँ ! यदि जीवित रहे तो तत्सम्बधी न्यूनतम (Minimum) आवश्यकतायें (Requirements) उत्पन्न होंगी, जिनकी पूर्ति जीवनक्रम में स्वाभाविक रूप से स्वत: ही हो जावेगी। यह सब क्या और कैसे होगा, इसकी विस्तृत चर्चा अन्य कृति 'जीवन का विज्ञान व जीने की कला' में विस्तारपूर्वक करेंगे। यदि सूत्र रूप में कहा जावे तो हम कह सकते हैं कि हमारा यह वर्तमान जीवन हमारी अनंत यात्रा का इस त्रिकाली भगवान आत्मा की अनादि अनंत जीवन यात्रा का एक पड़ाव मात्र है । यह हमारी अन्तिम नियति नहीं है। यह हमारा गंतव्य नहीं है। यह हमारा अन्तिम लक्ष्य नहीं क्या मृत्यु महोत्सव अभिशाप है १/४१Page Navigation
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