Book Title: Kya Mrutyu Abhishap Hai Author(s): Parmatmaprakash Bharilla Publisher: Pandit Todarmal Smarak TrustPage 10
________________ कोई कह सकता है कि अभी तो हम जवान हैं, पूरा बूढ़ापा तो पड़ा है कि यह सब करने के लिए; उनसे मैं कहना चाहता हूँ कि भाई! बुढ़ापे का वह मजबूरियों व पराधीनता से भरा कमजोर जीवन भला जीवन को क्या दिशा देगा? यदि दिशा मिल भी गयी तो अब चलने के लिए शेष बचा ही कितना है? एक बात और भी है कि इस बात की क्या गारंटी है कि तू बूढ़ा होगा ही? कौन जाने यह जीवन दीप कब बुझ जावे, तब यह कार्य तू कब करेगा? ___इनके अतिरिक्त और भी अनेकों ऐसे प्रश्न हैं, जो मात्र वर्तमान में ही प्रासंगिक होते हैं। (हाँ! यह वर्तमान एक मिनिट से लेकर एक जीवन तक कुछ भी हो सकता है।) तात्कालिक महत्त्व के अनेक प्रश्न हमारे मन में उठते हैं व अनुत्तरित ही कालांतर में वहीं दफन हो जाते हैं। ___'धार्मिक व दार्शनिक मान्यताओं का विज्ञान की नजर में क्या स्थान है, क्या वे विज्ञान की कसौटी पर खरी उतरती हैं?' – ऐसे ही कुछ प्रश्न हमें निरंतर परेशान किये रहते हैं व हमें दृढ़ता पूर्वक धर्म व अध्यात्म की दिशा में आगे नहीं बढ़ने देते। अविचारी लोगों की तो बात ही क्या करें, पर विचारवान लोगों के चित्त में यह प्रश्न तब उठना प्रारंभ होते हैं, जब जीवन की दौड़ में भरपूर हाथ आजमा लेने के बाद भी कुछ हाथ लगता दिखाई नहीं देता। जीवन अर्थहीन ही दिखाई देता है, तब प्रश्न उछता है कि अब क्या' ? ___ पहिले जब-जब भी कोई कहता था कि 'अरे! क्या मात्र इस आज में ही उलझा रहेगा? कुछ कल का तो विचार कर; आज के इस क्षणिक आनंद के लिए अपने भविष्य को क्यों खतरे में डालता है।' तब यह कहता था कि कल किसने देखा है, तुम्हारे इस काल्पनिक, सपनों के कल के लिए अपना यह जीता-जागता प्रत्यक्ष आज' क्यों दाँव पर लगाऊँ ?' और सिर्फ अपना 'आज' ही संभालने में अपना सारा जीवन ही बिता देने के बाद जब कुछ भी हाथ नहीं आता और यह जीवन - क्या मृत्यु महोत्सव अभिशाप है १/८ -Page Navigation
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