Book Title: Kya Mrutyu Abhishap Hai Author(s): Parmatmaprakash Bharilla Publisher: Pandit Todarmal Smarak TrustPage 25
________________ मृत्यु महोत्सव होती है, उनका पुनर्जन्म महोत्सव होता है। उनका जन्म कल्याणस्वरूप होता है, स्व व पर का कल्याण करनेवाला होता है। जन्म अपने आप में कोई महान वस्तु नहीं है और इसलिए जन्म को कल्याणस्वरूप मानना व कहना उचित नहीं है; तथापि जिनका जीवन कल्याणस्वरूप होता है, उनके जन्म को तो कल्याणस्वरूप कहा ही जायेगा, माना ही जायेगा। ___ वर्तमान में हमारी जीवन शैली में मात्र वर्तमान की ही मुख्यता है। दिन-रात हमारे चिंतन का विषय मात्र यह वर्तमान मानवजीवन ही है। इसलिए हमारे क्रिया-कलापों में इस जीवन के बाद के जीवन के लिए कोई परवाह या कोई तैयारी की झलक दिखाई नहीं देती है। ___ यदि हम अपने चिन्तन के दायरे को विस्तार देकर अनन्त काल तक रहने वाले इस भगवान आत्मा के बारे में सोचना प्रारंभ करेंगे तो हमारी सोच में, हमारी रीति-नीति में, हमारी वर्तमान जीवनशैली में; मूलभूत परिवर्तन हो जायेगा और तब हम मृत्यु के प्रति भयभीत भी न रहेंगे, मात्र कपड़े बदलने जैसी सामान्य क्रिया की तरह इस देहपरिवर्तन की क्रिया को भी सहज ही स्वीकार कर लेंगे। ___ अब तक हमने जो चर्चा की, वह एक मिली-जुली चर्चा थी, जिसमें दोनों पक्ष शामिल थे, एक स्वयं मृत्यु को प्राप्त व्यक्ति व दूसरा उसका परिकर। (परिवार, रिश्तेदार, मित्रादिक, समाज व देश) अब हम दोनों पक्षों को अलग करके पृथक्-पृथक् उन पर पड़नेवाले प्रभावों की चर्चा करें। सचमुच मरण को प्राप्त व्यक्ति को तो मरण के प्रति चिन्तित होने का कोई कारण ही नहीं है; क्योंकि आज अपने इस वर्तमान जीवन के सन्दर्भ में चिन्तायें करने के लिए अनेकों प्रबल कारण व परिस्थितियाँ मौजूद हैं; पर मृत्यु होने के बाद वह न तो उन परिस्थितियों का कर्ता रहेगा और न उपभोक्ता; और तो और ज्ञाता भी नहीं रहेगा, यानि कि न तो कुछ करने की उसकी कोई जिम्मेदारी रहेगी और न ही क्षमता, न ही वह उसके - क्या मृत्यु महोत्सव अभिशाप है ?/23Page Navigation
1 ... 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64