Book Title: Kya Mrutyu Abhishap Hai Author(s): Parmatmaprakash Bharilla Publisher: Pandit Todarmal Smarak TrustPage 15
________________ जन्म लिया है; उनका भी सम्बन्धी बन गया है। इस रिश्ते से वे सभी लोग हमारे भी तो सम्बन्धी बन गए हैं। सम्बन्धी के दुःख-सुख में सम्बन्धी शामिल नहीं होंगे तो कौन होगा ? इस रिश्ते से तो उन्हें हमारे मृत्यु सम्बन्धी गम में शामिल होना चाहिये व हमें उनके यहाँ मनाए जाने वाले जन्म सम्बन्धी जश्न में; पर ऐसा होता नहीं। ___ एक ओर मृत्यु का मातम चलता रहता है, पुरजोर ! और दूसरी ओर जन्म की खुशियाँ मनाई जाती हैं, इस तथ्य से सर्वथा बेखबर कि जिस जीव ने हमारे यहाँ जन्म लिया है, वही कहीं न कहीं मृत्यु को प्राप्त हुआ है और वहाँ मृत्यु उसे अभीष्ट (स्वीकार) नहीं थी, यह उसका अप्रिय प्रसंग था। . परिवर्तन का ऐसा ही प्रसंग विवाहादिक के अवसर पर भी तो उपस्थित होता है, न सही देह का परिवर्तन; गृह परिवर्तन ही सही। यह परिवर्तन भी कोई छोटा-मोटा नहीं है। कन्या के लिए तो यह . बहुत बड़ा परिवर्तन है। क्या कुछ नहीं बदलता? सब कुछ ही बदल जाता है, घर बदल जाता है, परिवार बदल जाता है, नगर व डगर बदल जाती है, कुल-गोत्र बदल जाते हैं, और तो और रिश्ते बदल जाते हैं। अपने पराये हो जाते हैं और पराये अपने। फिर भी तब तो कोई विलाप नहीं करता, सभी महोत्सव मनाते हैं। वर पक्ष वाले तो खुशियाँ मनाते ही हैं; पर कन्या पक्ष वाले भी पीछे नहीं रहते, वे भी उतने ही प्रसन्न होते हैं। इसप्रकार हम पाते हैं कि मृत्यु व जन्म की तरह ही 'शादी' भी विरह व मिलन की ही एक प्रक्रिया है, कहीं विरह होता है, तब कहीं मिलन होता है। कन्या अपने माता-पिता को छोड़कर ससुराल जाती है। यदि शादी की प्रक्रिया में विरह में जश्न ही मनाया जाता है, आनन्द की अनुभूति होती है; तब एक बात तो साबित हो ही जाती है कि विरह अपने आप में कोई दुःख नहीं है, विरह हमेशा ही दुःखमय व दुख का कारण नहीं हुआ करता; तब मृत्यु के सन्दर्भ में भी मात्र विरह ही शोक - क्या मृत्यु महोत्सव अभिशाप है ?/१3Page Navigation
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