Book Title: Kya Mrutyu Abhishap Hai Author(s): Parmatmaprakash Bharilla Publisher: Pandit Todarmal Smarak TrustPage 18
________________ मृत्यु के सन्दर्भ में ऐसा नहीं होता। मृत्यु का वरण हम स्वयं नहीं करते, सप्रेम; बल्कि हम तो उससे भागते ही रहते हैं, निरन्तर; अरे सचमुच तो क्या, कल्पना में भी मृत्यु को अपने पास नहीं फटकने देना चाहते, उसकी चर्चा तक हमें पसन्द नहीं। यदि कभी प्रसंगवश चर्चा चल ही पड़े तो हम तत्क्षण उसे रोक देना चाहते हैं, बलात्। हालांकि शादी-ब्याह की चर्चा हम बड़े चाव से करते हैं, उसकी चर्चा चलने पर हमारा मन बल्लियों उछलने लगता है, दूर देश जाने की चर्चा चलने पर भी हम अनन्त उत्साह से भर उठते हैं, फिर मृत्यु की चर्चा आने पर ही क्यों मायूस हो जाते हैं; क्योंकि मृत्यु के बाद का जीवन हमारी नजरों से ओझल रहता है। अरे! नजरों से तो क्या, कल्पना से भी ओझल रहता है। मृत्यु के बाद हमारे पास भविष्य की कोई परिकल्पना नहीं होती और तो और भविष्य है भी या नहीं, इसके बारे में भी हम सशंकित ही रहते हैं। ___ आखिर ऐसा क्यों होता है ? जब विवाह, या लम्बे-लम्बे समय के लिए परदेश गमनादि भी विरह के ही प्रसंग हैं और तब भी ये प्रसंग शुभ प्रसंग ही कहे व माने जाते हैं; तब उसीतरह का 'मृत्यु' नामक यह प्रसंग हमें क्यों अनिष्ट लगता है, क्यों अशुभ लगता है, क्यों हमें भयभीत करता है ? इसका एकमात्र कारण है, हमारी दृष्टि की संकीर्णता। विवाहादि में जहाँ वर्तमान तो हमारे सामने है ही, जीता-जागता; साथ ही भविष्य भी हमारी दृष्टि से ओझल नहीं है, भविष्य है व उसके बारे में स्वर्णिम परिकल्पना भी है। मृत्यु के बारे में ऐसा बिलकुल नहीं है। मृत्यु के बारे में भय या आशंका सिर्फ इस बात की ही नहीं रहती कि मृत्यु के बाद के संयोग कहीं वर्तमान संयोगों से बदतर न हों; बल्कि हमें तो मृत्यु के बाद अपना अस्तित्व ही संदिग्ध दिखाई देता है और इसीलिए मिट जाने की अपेक्षा हम बने रहना पसन्द करते हैं, जीवन में चाहे कितने ही विपरीत संयोग हों, हम मरना नहीं चाहते। - क्या मृत्यु महोत्सव अभिशाप है ?/१६Page Navigation
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