Book Title: Kuvalaymala Part 02
Author(s): Chandraguptasuri
Publisher: Anekant Prakashan Jain Religious Trust
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२०२
(२८२) 1 जह कोंत-सत्ति-सव्वल-सर-वर-खग्ग-प्पहार-विसमम्मि ।
पुरिसस्स होइ सवरे णिवारणं ताण संणाहो ।। 3 तह दुक्ख-सत्थ-पउरे संसार-रणंगणम्मि जीवस्स ।
जिण-वयणं संणाहो णिवारणं सव्व-दुक्खाणं ।। 5 जह दूसह-तम-भरिए णट्ठालोयम्मि कोइ भुवणम्मि ।
अंधो व्व अच्छइ णरो समुग्गओ जाव णो सूरो ।। 7 अण्णाण-महातम-संकुलम्मि अधस्स तह य जीवस्स ।
कत्तो दंसण-सोक्खं मोत्तुं सूरं व जिण-वयणं ।। 9 जह सयल-जलिय-हुयवह-जाला-मालाउलम्मि गुविलम्मि ।
वित्थिण्ण होइ सरं सहसा पुरिसस्स भीरुस्स ।। 11 तह चेव महामोहाणलेण संतावियस्स जीवस्स ।
सव्वंग-णेव्वुइ-करं जिण-वयणं अमय-सर-सरिसं ।। 13 जह दूर-टंक-छिण्णे कह वि पमाएण णिवडमाणस्स ।
जीवस्स होइ सरणं तड-तरुवर-मूल-पालंबो ।। 15 तह दूर-णरय-पडणे पमाय-दोसेहिँ णिवडमाणस्स ।
अवलंबो होइ जियस्स णवर मूलं व सम्मत्तं ।। 17 इय जह सयले भुवणे सव्व-भएसु पि होइ पुरिसस्स ।
सरण-रहियस्स सरणं किंचि व णो दीण-विमणस्स ।। 19 तह णरय-तिरिय-णर-देव-जम्म-सय-संकुलम्मि संसारे ।
जीवस्स णत्थि सरणं मोत्तुं जिण-सासणं एक्कं ।। 21 (२८३) इमं च एरिसं जाणिऊण दइए, किं कायव्वं । अवि य ।
फलयं व गेण्हसु इमं लग्गसु अवलंबणे व्व णिवडती ।
1) P नह for जह, J कोंति, P खग्गहारविसमंति ।. 2) P समरे for सवरे. 8) J दंसेण सोक्खं, P व्व for व. 9) P विउलंमि for गुविलम्मि. 10) J विच्छिण्णं, P सहसा ण भीयस्स. 11) P चेय. 12) P णेव्वुइयरं, J रस for सर. 13) P दूरकंटकिन्नो. 14) P जह for तड, P सालंब for पालंबो, P has an additional verse here, and it runs thus : 15) तह दूरणरयवडणे पसमाय दोसेहिं णिवडमाणस्स । जीवस्स होइ (?) सरणं जह तरुवरमूलसालंब ।।, P वडणे, J देसेहिं. 17) P इह for इय. 18) P णे for णो. 22) J adds मूलं व before गेण्हसु, J व्व for व.

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