Book Title: Kurmastakadvyam Author(s): Bhojdev Maharaj Publisher: L D Indology AhmedabadPage 26
________________ Avanikūrmaśatam पोट्टभरणस्स कज्जे (जे जा) या ते मुआ हु तम्मि खणे । परउअयरणस्स कए जाणं जम्मो हु ते धन्ना ॥५७॥ कमढवइ तं सि जाओ जाएहिँ वि एत्थ किं थ अन्नेहिं । तं किं पि जेण विहिअं अन्नाण मणे न जं माइ ॥५८॥ कमढवइ किं भणिज्जउ धन्नो जम्मो हु तुज्झ एक्कस्स । परउअयरणस्स का २४ )ए अप्पा जेणं तहा खविओ ॥५९॥ निअउअयरणस्स कए सयलो वत्थूण आयरं कुणइ । परउअयरणं अप्पा कुम्म तय(?तए) च्चेअ इह विहिओ ॥६०॥ कइआ वि जो न दिट्ठो न य निसुओ नेअ अणुहवं पत्तो । सो मग्गो पढमं चिअ कम्मेणं एत्थ कविओ ॥६॥ जाओ कुम्म तुमं चिअ अन्नेहिँ मुहा ( २५) किमेत्थ जाएहिँ । पायाले मज्जन्तं भुअणं पि हु जेण उद्धरिअं ॥६२॥ के के न एत्थ जाया ताणं मग्गो वि एस न हु फुरिओ । परउअयरणुज्झाओ एक्को कुम्मो हु निप्फन्नो ॥६३॥ परउअयरणे वट्टा पढमं कुम्मेण एत्थ कड्ढविआ । गरुएहिँ कया मग्गा पच्छा सोक्खेण गम्मति ॥६४॥ दन्तिकिरिपन्नएहिं देक्खा( २६ )वेक्खीए धारिआ धरणी । चक्कम्मणमणमग्गे निव्वडिअं एत्थ कुम्मस्स ॥६५॥ अणचंकमणा इअरे पढमो ववसाइआण इह कम्मो । जेण रइए हु मग्गे वट्टा इअराण संपन्ना ॥६६॥ अणचल्लिराण पढमो विहिणा कुम्मो हु एत्थ निम्मविओ । ववसाइआण पढमो सो च्चिअ पेच्छेह कह जाओ (२७) ॥६७॥ धन्ना सि कच्छवि तुमं धन्ना जाई वि तुम्ह निप्फण्णा । जीए जाएण कयं तं किं पि न जाइ जं भणिउं ॥१८॥ रे धरह धरं उद्धरह तिहुअणं पायडेह तह सतिं । देक्खावेक्खीए कयं किरिपमुहा को न उअहसइ ॥६९।। कुम्मो धरेइ भुअणं तए समं कीस तं सि धुअ कहसु । लज्जसि न विप्फुरं २८)तो अह व अयासाण कह लज्जा ॥७॥ अणमग्गेण वि चलिरा धन्ना पावन्ति के वि गरुअत्तं । अणमग्गचल्लिरेण वि कुम्मेण कहं जसो पत्तो ॥७१॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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