Book Title: Kurmastakadvyam Author(s): Bhojdev Maharaj Publisher: L D Indology AhmedabadPage 29
________________ Kūrmaśatakadvayam पसवच्छलेण गब्भा सविआ सयलाण एत्थ महिलाण । सच्चिमओ पुण पसवो जाओ कमढस्स जणणीए ॥१०२॥ इअराण पसविआ(४०)ण वि गठभा सविआ हु सयलमहिलाण । सच्चेण पसविआ पुण एक च्चिअ कमढ तुह जणणी ॥१०३॥ अन्नाओं पसविआओं वि नेअ पसूआउ ताण गब्भचुई । जाया सच्चप्पसवा एक्क च्चिअ कमढिणी भुअणे ॥१०४॥ भुअणे वि जा न जाओ सरिसो ता किं करेउ सो वरओ । एक्को च्चिअ वहइ भरं (४१) कुम्मो बीअं अपावन्तो ॥१०५॥ एक्कलधुरिओ सो च्चिअ भारेण समं पि एत्थ जो बीअं । उव्वहइ उअह भारं अन्नो उण भणिअमेत्तेण ॥१०६॥ कुम्मस्स वि वीसामो दिन्नो एक्केण भोअराएण । हरिऊण वेरिआसं कुम्मसयं विरअं तेण ॥१०७॥ गाहासयं न एअं गाहाण सएहिँ केवले( ४२ )हिँ कयं । सयवारं एक्वेक्कं पढइ जणो जेण तेण सयं ॥१०८॥ एआइँ सयाइँ तए गाहाण सएहिँ नेअ रइआइं । सयवारं आवत्ती जेणं एआण तेण सए ॥१०९॥ ॥ ॥ ॥ इति महाराजाधिराजपरमेश्वरश्रीभोजदेवविरचितं अवनिकूर्मशतम् ॥ ॥ ॥ मङ्गलं महाश्रीः ॥ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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