Book Title: Kurmastakadvyam Author(s): Bhojdev Maharaj Publisher: L D Indology AhmedabadPage 28
________________ Avanikūrmasatam 7 दिढे मग्गे जो वि हु सो वि हु पायडइ निअयववसा(३४)यं । केणावि हु अ थाइ (?) . . . . . .कुम्मो च्चिअ पयट्टो ॥८७।। जाई अइसयहीणा रूअं पुण बोल्लिउं पि न हु जाइ । कुम्मेण ववसिएहिं तह वि हु लहुईकया पुहई ॥८८॥ धवला[ ३५ ]ण गई एसा मुआ वि न मुअन्ति उअह धवलत्तं । कुम्मस्स मयस्स वि कप्परं पि भुअणं समुव्वहइ ॥८९॥ गरुआण गई एसा अन्ते वि [मुन्ति नेअ अत्ताणं । कुम्मो मओ वि पट्टि न हु कड्डइ कह व धरणीए ॥१०॥ उव्वूढो भुअणभरो सुहिआ धरणी कया जणेण समं । एम्हि तेहिं पि समं जं रुच्चइ होउ तं कुम्मे ॥११॥ उव्वूढो अन्नेहिँ वि भारो धरणीए किं तु मिलिएहिं । एक्कलजुअस्स घडणा लग्ग( ३६ )वि कुम्मस्स उप्पण्णा ॥१२॥ सेसकिरिकुम्मदिग्गयपमुहाणं निअह ववसिअं लोआ । अप्पा परस्स कज्जे आजम्मं जेहिं तह खविओ ॥१३॥ किरिसेसकमढदिग्गयपमुहाणं निअह ववसिअं लोआ । चइऊण निअयसोक्खं अप्पा जेहिं तहा खविओ ॥१४॥ कुम्मेण किं त्थ विहिअं लोओ स( ३७ )लहेइ लोअभणिए( ण) । जेण ससेसा पुहई वूढा न हु उअह नीसेसा ॥१५॥ लोआणं कुम्मस्स य जम्मो जम्मप्फलो विहाइ महं (।) कज्जेण पुणो दोण्ह वि विवरीअं अन्तरं गरुअं ॥१६॥ विरएउ धुआं देव्यो भुअणस्स वि उप्परे तहा वि बला । निअचरिएहिं पेच्छह कुम्मो च्चिअ उप्परे जाओ ॥१७॥ (३८) जइ जम्मो च्चिअ लब्भइ ता लब्भउ कमढजम्मसारिच्छो । अफलेणं अन्नेणं लद्धेण व होउ न हु कज्जं ॥९८॥ रे कमढ तुज्झ गोत्ते के न हुआ के न अत्थि होहिंति । सच्चेण पुण भणामो तुज्झ सरिच्छो तुमं चेअ ॥१९॥ ओ कमढो च्चिअ जाओ जाएहिँ वि किं जणेहिँ अन्नेहिं । जम्मस्स किं पि (३९) सरिसं जीवंतेहिं न जेहिं कयं ॥१००॥ जइ जम्मो च्चिअ लब्भइ ता लब्भउ कमढजम्मसारिच्छो । लद्धेण व अन्नेणं न हु कज्जं तेण न हु कज्जं ॥१०१॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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