Book Title: Kurmastakadvyam Author(s): Bhojdev Maharaj Publisher: L D Indology AhmedabadPage 37
________________ Kūrmaśatakadvayam गरुएणं गरुअत्तं अवहरिअं नेअ कह व फिट्टेइ । तं तस्स च्चिअ लहुअं इअराण पुणो तह च्चेअ ॥१०२॥ तइ धरिओ धरणिभरो लहुओ वलयं( ३९)व तुह भुए सहइ । कुम्मपमुहेहि सो वि हु चडिओ भारो व्व पडिहाइ ॥१०३॥ धरणी सहावगरुआ भोएणं धारिअ त्ति अइगरुआ । एण्हि इमीए समुहं को पेच्छह पेच्छिउं तरइ ॥१०४॥ अणिमालहिमाइगुणे तुह आयत्ते मए हु विनायं । लहुआविआ वि धरणी का ४० )ह णु तए सा वि गोरविआ ॥१०५।। लहुआविआ हु धरणी लहुअविअं मन्नए न अप्पाणं । तइ लहुइअ त्ति एसा गरुअं अत्ताणयं मुणइ ॥१०६॥ दिन्नो वि हु कण्हेणं इमीए इह गारओ हु खोणीए । पडिहाइ नेअ गरुओ लहुअत्तं तइ कयं गरुअं ॥१०७॥ मिलवि( ४१) पसूहि धरिआ संकिअवित्तासकंपिरी थक्का । धरणी कंपुम्मुक्का अज्जपरं भोअ संपन्ना ॥१०८॥ कुलगिरिणो भूमिहरा सयला वि हु लहुइआ इहं जेण । तेण सयं निम्मविअं एअं सिरिभोअराएण ॥१०९॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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