Book Title: Kurmastakadvyam Author(s): Bhojdev Maharaj Publisher: L D Indology AhmedabadPage 31
________________ 10 Kurmaśatakadvayam चिरपरिचिआण पासा उद्दालसु लहुववेसु तह धरणिं । तह वि तइ च्चिअ रत्ता अन्नस्स मुहं न पुलएइ ॥१२॥ कुम्मकिरिसेसपमुहा एसो भारो हु तुम्ह पडिहन्तो । पुज्जइ सव्वं दिटुं तुम्हाण वि गरुइमा मुणिआ ॥१३॥ तुम्हाण एस भारो पडिहंतो कुम्मसेसकिरिपमुहा । (६) पेच्छह इमस्स भारं भूराओ भणइ विहसन्तो ॥१४॥ भारुव्वहणसमत्था अज्जावहि जे जयम्मि विक्खाया । ते वि उअ हासपयविं कुम्मप्पमुहा तए नीआ ॥१५॥ भारस्स दुव्वहत्तं पसुवग्गे निवङिअस्स पडिहतं । भुवणेक्कधवल तं चिअ तए कहं कह णु अवहरिअं ॥१६॥ निअगरुइमाए लहु(७)अं भुअणं काऊण वुब्भए पच्छा । तुह नड्डअत्तमेअं अन्नस्स न कह व संचडइ ॥१७॥ धरणि तुमं अइगरुई तुज्झ सयासाओं कच्छओ गरुओ । भोएण सो वि जित्तो गरुआहिँ वि अत्थि गरुअयरा ॥१८॥ असरिच्छं धरणिभरं धारय वग्गेण सह वहंतेण । अस्थि गरुआण गरुआ जणवाओ इह तए हरिओ (८) ॥१९।। अइदुव्वहो हु भारो धरणि त्ति जणस्स भोअ पडिहन्तं । कह अक्कमेण सो च्चिअ तए हिओ तं धरतेण ॥२०॥ कुम्मस्स सो हु दप्पो माहप्पो सो हु सेसपमुहाण । धरणिं धरंतएणं कह णु तए सो हु उप्पुसिओ ॥२१॥ धरणी तए हु धरिआ गरुअत्तं कच्छवस्स अवहरिअं । अकुणंतेण व काई व तस्स त(९)ए पाडिआ वट्टा ॥२२॥ कुम्मकिरिसेसपमुहा सच्चेण पसू मए हु विन्नाया । अन्नह हिअयं ताणं न जाइ सयसिक्करं कह णु ॥२३॥ धरणिभरे तइ कलिए सो अइगरुओ वि पलहुओ कुम्मो । अणुआरंभवलग्गे को लायइ लेक्खए इअरे ॥२४॥ लहुवविऊणं भुअणं पच्छा एअंतओ वहन्तेण । को (१०) गारओ हु अप्पे को तस्सि कहसु निम्मविओ ॥२५॥ लहुवविऊणं कुम्मं समयं धरणीए पुण वहन्तेण । अप्पस्स तह य ताणं वड्डत्तं कं तए विहिअं ॥२६॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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