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निर्बलता और न ही डरपोकता । हम देखते हैं कि कायर व्यक्ति वही होता है जिसमें उत्साह, बल या साहस की कमी होती है । जबकि क्षमा में इनकी कमी हो, यह आवश्यक नहीं है । अधिकांशतः क्षमावन्त इनसे सम्पन्न होता है । निर्बल का बल कितना ? अतः बलवानों के लिए निर्बलों का अनुचित कार्य सदैव क्षम्य है । कबीर ने ठीक ही कहा है
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छिमा बड़ेन को चाहिए, छोटन को उत्पात ।
कहा विष्णु को घट गयो, जो भृगु मारी लात ।। 1
क्षमावान् प्रत्येक स्थिति - चाहे वह अनुकूल हो या प्रतिकूल-का सामना कर लेता है । कायर में सहनशक्ति वाह्य होती है, आन्तरिक नहीं । वह प्रतिकार करना चाहता है किन्तु कर नहीं पाता, वह क्षमाशील नहीं है । जबकि क्षमाशील प्रतिकार करना ही नहीं चाहता । क्षमा में पलायनवादिता नहीं होती है । कायरता तो अपने जन्म के साथ पलायनवादिता की उत्प्रेरणा देती हैं । क्षमा में धैर्य और पुरुषार्थ के स्वर होते हैं । कायर तो भाग्य के चरणों में सोया रहता है । कायर उत्तेजित तो होता है, परन्तु वह भीतर से भयभीत रहता है और इसी कारण अपराधी का प्रतिकार नहीं करता है जबकि क्षमाशील सदैव निडर होता है । जब वह किसी की बुराई चाहता नहीं, करता नहीं और अपने प्रति बुराई करने वालों पर कभी क्रोध करता नहीं, तब भला वह भयभीत क्यों होगा । क्षमावान् की उपमा पृथ्वी और वृक्ष आदि से की गई है। सच्चे क्षमावान् को प्राणों का भय भी नहीं रहता । प्रेमचन्द 'रंगभूमि' में कहते हैं, 'प्राणभय से दुबक जाना कायरों का काम है ।' प्रतियोगी से डर कर भाग जाना कायरता है । साहस, बल, वीर्य होते हुए भी प्रतियोगी का प्रतिकार न करना क्षमा है | क्षमा में भय की अनुपस्थिति नितान्त जरूरी है ।
कायरता की परवशता में मनुष्य अपराध या भूलें करता है । जबकि क्षमा की भागीरथी में उन अपराधों के कल्मष धोये जाते हैं । क्षमावन्त अपने अन्तरंग के शत्रुओं - क्रोध, द्वेष आदि को परास्त करने की सोचता है । कायर बाह्य शत्रुओं से मुकाबला कर भी सकता है, लेकिन आन्तरिक शत्रुओं को जीतना उसके लिए टेढ़ी खीर है । हम स्वयं अनुभव कर सकते हैं कि क्रोध-शत्रु को जीवन-दुर्ग से १. उदधृत -- वृहत्सूक्ति कोश, भाग ३, पृष्ठ ३५.
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