Book Title: Kshama ke Swar
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jain Shwetambar Shree Sangh Colkatta

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Page 51
________________ . [ ४६ ] त्याग करना अनिवार्य बताया है। बौद्धधर्म में क्रोध की निन्दा : ___ बौद्ध-धर्म के प्रवर्तक भगवान् बुद्ध ने क्रोध को त्यागने का उपदेश दिया है। उन्होंने कहा है कि क्रोध न करें। क्रोध के वश न होवें। जो क्रोध करता है, वह स्वयं आना अहित करता है, परन्तु जो क्रोध का जवाब क्रोध से नहीं देता वह विजयी हो जाता है। प्रतिपक्षी को क्रोधांध देखकर जो अत्यन्त शान्त रहता है, वह अपना और पराया दोनों का ही हित-साधन करता है। बुद्ध का कथन है, जो चढ़े हुए क्रोध को चलते हए रथ की तरह रोक लेता है, उसी को मैं सारथी कहता हूँ, दूसरे तो केवल लगाम पकड़ने वाले हैं। पूनः वे कहते हैं, क्रोध न करो। शत्रुता को भूल जाओ। अपने शत्रुओं को मैत्री से जीत लो। क्रोधाग्नि शान्त रहनी चाहिए। यही बुद्ध का अनुशासन बुद्ध ने क्रोधपर विजय प्राप्त करने के लिए अक्रोध का प्रतिपादन किया है । उन्होंने उद्घोषित किया है कि अक्रोध से क्रोध को जीतें। अक्रोधी को दुःख सन्ताप नहीं देते।' अक्रोधी देवताओं के पास जाते हैं।' संयुत्तनिकाय में एक ऐसा प्रसंग उपलब्ध होता है जो क्रोध का नाश करने की प्रेरणा देता है। उसमें लिखा है कि भारद्वाज गोत्रीय ब्राह्मण ने बुद्ध से पूछा-किसका नाश कर मनुष्यसुख से सोता है ? किसका नाश कर शोक नहीं करता? किस एक धर्म का, बध करना, हे गौतम ! आपको रुचता है ? भगवान् ने कहाक्रोध का नाश कर सुख से सोता है, क्रोध का नाश कर शोक नहीं करता, विष के मूल स्वरूप क्रोध का, हे ब्राह्मण ! जो पहले बड़ा अच्छा लगता है । बध करना उत्तम पुरुषों से प्रशंसित है, उसी का नाश करके मनुष्य शोक नहीं करता। ... इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि बौद्ध धर्म में क्रोध को अनु१. धम्मपद, १७.४. २. बुद्धलीलासार संग्रह पृष्ठ ३०६ ३. धम्मपद, १७.२. ४. उद्धृत-भगवान् बुद्ध और उनका धर्म (डा० आंबेडकर), पृष्ठ २८३. ५. धम्मपद १७.३. ६. वही, १७.१ . ७. वही, १७.४. ८. संयुत्त निकाय ७.१.१ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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