Book Title: Kshama ke Swar
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jain Shwetambar Shree Sangh Colkatta

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Page 54
________________ 50 ఆశశశశికళ శశ శశశ శశికళ కళ కళలు श्री वीतरागाय नमः संवत्सरी पर्व, वीर संवत् 2510 क्षमा-प्रार्थना జాగ్య 5 आत्म-शोधन के पाचन-पव पर्युषण के पुनीत अवसर पर पाप-पङ्क का प्रक्षालन करने हेतु प्रमाद की परवशता में हुई भूलों बेटियों के लिए हम हृदय से क्षमा याचना करते हैं। हमारे विगत व्यवहार से यदि आपकी मनोभावनाओं को कोई ठेस पहुंची हो और मनोमालिन्य का कोई अवसर उपस्थित हुआ हो तो क्षमा की निर्मल गङ्गा में उनपाप-कलमषों का विसर्जन कर हम सभी आत्म-विशुद्धि के पावन पथ पर अग्रसर हों। :325E0%250000000000003 శశజాశకశ్యశ్వర శనగ क्षमाप्रार्थी : मुनि महिमाप्रभ सागर मुनि ललितप्रभ सागर सुनि चन्द्रप्रभ सागर सम्पर्क सूत्र: 1. श्री जैन श्वे. मन्दिर, के. 24/5 रामघाट, वाराणसी-२२०००१ ४२.पा. वि. शोध संस्थान, बी. एच. यू., वाराणसी-२२०००५ ॐxxxxxxxxxxxcsar Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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