Book Title: Kshama ke Swar
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jain Shwetambar Shree Sangh Colkatta

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Page 52
________________ [ ४७ । चित धर्म माना है। और उससे दूर रहने के लिए प्रेरणा दी गई है। काध को निर्बल करने का उपाय-मौनः - मौन क्षमा की अभिव्यक्ति है । दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं । अरबी कहावत है कि मौन के वृक्ष पर शान्ति के फल लगते हैं। सही है। क्रोध को मौन शान्त करता है। मौन से क्रोध का नाश होता है। यह क्रोध की अचूक दवा है। मौन में क्रोध की अभिव्यक्ति नहीं होती। ऐसा व्यक्ति स्वयं शान्त रहता है, दूसरों को भी शान्त करने की क्षमता रखता है। मौनव्रती पर कोई क्रोध नहीं कर सकता। उबला हुआ दूध तभी उफनेगा जब उसको अग्नि का संयोग मिलेगा। ठंडे जल के आगे उसके उफनने की शक्ति समाप्त हो जाती है । मौनी के मुख की खिड़की बन्द होती है । जब कि कठोर वाणी ही क्रोध का पोषण करती है । इसलिए क्रोध को दुर्वचनों से विशेष प्रेम होता है। कारण, क्रोध को केवल कठोर वचनों का ही बल है। जब व्यक्ति वचन-बल से रिक्त होगा तो वह क्रोधवृत्ति से युक्त कैसे होगा ? अतः हमारे अपने क्रोध को निर्मल करने में मौन सहायक है । हाँ! मौनव्रती में परोक्ष रूप में क्रोध का उद्भव हो सकता है किन्तु वह क्रोध निरन्तर बना हुआ नहीं रहता है। वह पानी के बुलबुलों की तरह क्षणिक होता है। उसका हृदय पर कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता है। मौन पवित्रतम विचारों का मन्दिर है। इसके द्वारा इन्द्रियों पर नियन्त्रण हो जाता है। इससे व्यक्ति उपशमयुक्त बनता है। प्रसंग आने पर हमें मौन हो जाना चाहिए। क्रोध का द्वार बन्द कर देता है। 'रंगभूमि' में प्रेमचन्द ने लिखा है कि "क्रोध अत्यन्त कठोर होता है। वह देखना चाहता है कि मेरा एक वचन रूपी तीर निशाने पर बैठता है या नहीं ! क्रोध की शक्ति अपार है, ऐसा कोई घातक शस्त्र नहीं है, जिससे बढ़कर काट करने वाले यन्त्र उसकी यन्त्रशाला में न हों, लेकिन मौन वह मन्त्र है, जिसके आगे उसकी सारी शक्ति विफल हो जाती हैं। मौन उसके लिए अजेय है।" सचमुच, 'मौनं सर्वार्थसाधनम् ।। १. पंचतन्त्र, ४.४८ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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