Book Title: Kshama ke Swar
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jain Shwetambar Shree Sangh Colkatta

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Page 50
________________ [ ४५ ] स्वयं नष्ट हो जाता है । मानव क्रोध में पागल होकर गुरुजनों के प्रति अनर्गल प्रलाप कर देता है । वाल्मीकि रामायण में भी यही बात कही गई है कि क्रोध से उन्मत्त हुआ मनुष्य कौन-सा पाप नहीं कर डालता, वह अपने गुरुजनों की भी हत्या कर देता है । ' क्रोधित मनुष्य नहीं जानता कि क्या कहने योग्य है और क्या कहने योग्य नहीं है । क्रोधी के लिए न कुछ अकार्य है और न कुछ अकथनीय ही है । 3 वे पुरुष धन्य हैं जो उत्पन्न हुए क्रोध को वैसे ही रोक लेते हैं जैसे पानी आग को । वही पुरुष महात्मा कहलाता है, जो पैदा हुए क्रोध को क्षमा के द्वारा वैसे ही दूर कर देता है, जैसे सर्प केंचुली को । रामचरित मानस हिन्दू समाज में विश्रुत धार्मिक ग्रन्थ है । उसमें भी क्रोध की विविध प्रकार से निन्दा की गई है । इसमें क्रोध को प्रबल दुष्ट, पाप का मूल धर्म का विनाशक, मोह- सेना का एक अंग, ' नरक का पंथ 10 आदि बताया गया है । क्रोध की आलोचना करते हुए तुलसीदास जी कहते हैं- 1 9 लखन कहेउ हंसि सुनहु मुर्ति क्रोध पाप कर मूल । जेहि बस जन अनुचित कहि चहिं विश्व प्रतिकूल ॥ 1 लक्ष्मण ने मुस्करा कर परशुराम से कहा - मुनिजी ! क्रोध पाप गलत काम कर बैठते हैं और की जड़ है । क्रोध के प्रभाव में मानव विश्व में क्रोध से अनर्थ हो जाता है । वैशेषिक दर्शन में क्रोध को द्व ेष का एक भेद माना है और उसे द्रोह आदि की अपेक्षा शीघ्र नष्ट हो जानेवाला कहा है । 12 इस प्रकार सम्पूर्ण भारतीय आचार-दर्शन में क्रोध को लौकिक एवं पारलौकिक दोनों दृष्टि से अनुचित माना गया है और इसका १. गीता, शांकरभाष्य २.६३. २. वाल्मीकि रामायण, सुन्दरकाण्ड, ५५.४. ३. वही, सुन्दरकाण्ड, ५५.५. ४. वही, सुन्दरकाण्ड,. ५५.४. ६. रामचरितमानस, अरण्यकाण्ड, दोहा ३८ ८. वही, किष्किधाकांड, दोहा १५ ५. वही, सुन्दरकाण्ड, ५५.६. ७. वही, बालकाण्ड, ६. अरण्यकांड, दोहा ४३. १९. वही, बालकाण्ड, Jain Education International १०. सुन्दरकाण्ड, दोहा ३८. १२. हिन्दी शब्दसागर, पृष्ठ १०६० For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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