Book Title: Kshama ke Swar
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jain Shwetambar Shree Sangh Colkatta

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Page 28
________________ [ २३ ] पूर्ण ! यदि सूनापरान्त के लोग तुम्हें लाठी से मारेंगे तो तुम्हें क्या होगा ? ___भन्ते ! यदि सूनापरान्त के लोग मुझे लाठी से मारेंगे तो मुझे यह होगा-यह सूनापरान्त के लोग बड़े भद्र हैं, जो मुझे किसी हथियार से नहीं मारते हैं।...... ___पूर्ण ! यदि सूनापरान्त के लोग तुम्हें हथियार से मारें तो तुम्हें क्या होगा? भन्ते ! यदि सूनापरान्त के लोग मुझे हथियार से मारेंगे तो मुझे यह होगा—यह सूनापरान्त के लोग बड़े भद्र हैं, जो मुझे जान से नहीं मारते हैं । ...... पूर्ण ! यदि सूनापरान्त के लोग तुम्हें जान से मार डालें तो तुम्हें क्या होगा? ____ भन्ते ! यदि सूनापरान्त के लोग मुझे जान से भी मार डाले तो मुझे यह होगा-भगवान् के श्रावक इस शरीर और जीवन से ऊबकर शरीर विसर्जन के लिए जल्लाद की तलाश करते हैं, यह मुझे बिना तलाश किये मिल गया। भगवन् ! मुझे ऐसा ही होगा। सुगत ! मुझे ऐसा ही होगा। पूर्ण ! ठीक है। तुम क्षान्त हो। इस धर्मशान्ति से युक्त तुम सूनापरान्त जनपद में निवास कर सकते हो ! अब तुम जहाँ चाहो, जाने की छूट है। . उपर्युक्त प्रश्नोत्तर पूर्ण की उत्तम क्षमाशीलता का परिचय देते हैं। बुद्ध की दृष्टि में ऐसे सहिष्णु व्यक्ति ही धर्म का प्रचार और निर्वाण की प्राप्ति कर सकते हैं। बुद्ध स्वयं क्षमावन्त थे। आलवक यक्ष ने उनके साथ बहुत दुर्व्यवहार किया, लेकिन उन्होंने धैर्य रखा। अन्त में यक्ष का क्रोध बुद्ध की सहनशीलता से शमित हो गया था। क्षमा बनाम क्रोध : क्षमा चित्त की एक वृत्ति है और क्रोध भी। किन्तु दोनों में एकरूपता नहीं है। एक सद्वृत्ति है, तो दूसरी दुष्वृत्ति है। प्रथम के द्वारा द्वितीय पर विजय प्राप्त की जाती है। अर्थात् क्षमा के द्वारा १. द्रष्टव्य—(क) संयुत्तनिकाय, ३४.२.४.५ (ख) मज्झिमनिकाय, ३. ५. ३ २. सुत्तनिपात अट्ठकथा, -भगवान् बुद्ध और उनका धर्म, पृष्ठ ४५४ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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