Book Title: Kshama ke Swar
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jain Shwetambar Shree Sangh Colkatta

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Page 38
________________ [ ३३ ] भी यही बात चरितार्थ होती है। क्रोध एक चिनगारी है। चिनगारी को घास का समागम मिलता है, तभी वह भड़कती है। अन्यथा चिनगारी का अस्तित्व कितने समय का ! वह आविर्भत होती है और तत्काल तिरोहित हो जाती है। क्रोध की परम्परा भी तभी बढ़ती है, जब किसी को उसके विरोधी की ओर से क्रोध संवधर्क अवसर प्राप्त हो । यदि ऐसा नहीं होता है, तो क्रोध अधिक समय तक टिक नहीं पाता है; जैसे एक व्यक्ति मुझ पर क्रोधित हो रहा है । वह मुझ पर आघात या आक्षेप करता है। किन्तु मैं उसकी प्रतिक्रिया में प्रत्याघात या प्रत्याक्षेप नहीं करता, तो क्रोध की परम्परा में वृद्धि कैसी होगी? क्रोध समाप्त हो जाएगा। क्रोध की वृद्धि विपक्षी के प्रतिक्रिया से ही सम्भव है । कवि छत्रमल ने लिखा है देते गाली एक हैं, उलटे गाली अनेक । जो तू गाली दे नहीं, तो रहे एक की एक ॥ ___इस सम्बन्ध में भगवान बुद्ध का एक वृत्त प्राप्त होता है। एकदा बुद्ध विचरण करते हुए राजगृह में आए। भारद्वाज ब्राह्मण ने जब सुना कि भारद्वाज गोत्र ब्राह्मण श्रमण गौतम के पास दीक्षित हो गया है, क्रुद्ध और खिन्न हो बुद्ध के पास आया। और खोटी-खोटी बातें कहते हुए भगवान् को फटकार बताने और गालियाँ देने लगा। उसके ऐसा कहने पर, भगवान् उस खोटे-मुँह भारद्वाज से बोले-ब्राह्मण ! क्या तुम्हारे यहाँ कोई दोस्त-मुहीब या बन्धु-बान्धव पहुना आते हैं या नहीं? हाँ गौतम !... 'आते हैं। ब्राह्मण ! क्या तुम उनके लिए खाने-पीने की चीजें भी तैयार करवाते हो? हाँ गौतम ! कभी-कभी उनके लिए खाने-पीने की चीजें भी मैं तैयार करवाता हूँ। ब्राह्मण ! यदि वे किसी कारण से उन चीजों का उपयोग नहीं कर सकते हैं, तो वे चीजें किसको मिलती हैं ? गौतम ! ........ वे मुझ ही को मिलती हैं ? ब्राह्मण ! इसी तरह जो तुम कभी भी खोटी बातें न कहने वाले मुझको खोटी बातें कह रहे हो; कभी भी क्रुद्ध नहीं होने वाले मुझ पर कुद्ध हो रहे हो; कभी किसी को ऊँचा-नीचा न कहने वाले मुझको १. कथाकल्पतरु, भाग ३, पृष्ठ २६६. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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