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[ २१ ] दृष्टिकोण व्यापक है। उसके अनुसार क्षमा इहलोक एवं परलोकदोनों में लाभदायक है । महाभारतकार का कथन है कि--क्षमावानों के लिए यह लोक है, उन्हीं के लिए ही परलोक है । क्षमाशील व्यक्ति इस लोक में सम्मान और परलोक में उत्तम गति प्राप्त करता है।
वेदव्यास का कयन है कि इस जगत् में क्षमा वशीकरण रूप है। भला, क्षमा से क्या नहीं सिद्ध होता? जिसके हाथ में शान्ति/क्षमा रूपी तलवार है, उसका दुष्ट पुरुष क्या कर लेंगे ? तृणरहित स्थान में गिरी हई अग्नि अपने आप बुझ जाती है । क्षमाहीन पुरुष अपने को तथा दूसरे को भी दोष का भागी बना लेता है। एकमात्र क्षमा ही शान्ति का सर्वश्रेष्ठ उपाय है। ___ गीता में क्षमा को ईश्वरीय गुण एवं ईश्वरीय विभूति' कहा गया है। गीता का कथन है कि क्षमा, देवीसम्पदा को प्राप्त हुए पुरुष का लक्षण है। मनु ने विद्वज्जनों के लिए क्षमा को अनिवार्य माना है। वे कहते हैं कि विद्वान् क्षमा से ही शुद्ध-पवित्र होते हैं। इसी तरह विष्णुपुराण में साधुओं का बल क्षमा निर्दिष्ट है।' श्रीमद् भागवत् में लिखा है कि स्वयं समर्थ होने पर क्षमा-भाव रखे। महर्षि वाल्मीकि ने रामायण में क्षमा को स्त्रियों तथा पुरुषों का भूषण बताया है।' संक्षेप में
क्षमा यशः क्षमा धर्मः, क्षमायां विष्ठितं जगत् ।10 ----क्षमा ही यश है, क्षमा ही धर्म है, क्षमा से ही चराचर जगत् स्थित है। क्षमा के सम्बन्ध में बौद्ध दृष्टिकोण :
बौद्धधर्म, भारतीय आचार दर्शन का अभिन्न अंग है। इसमें भी क्षमा को महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। श्रेष्ठ क्षमा की परिभाषा देते हुए संयुतनिकाय में बताया है, स्वयं बलवान् होकर भी दुर्बल की १. महाभारत, आदिपर्व, ४२.६ २. वही, उद्योगपर्व, ३३.५२-५२. ३. श्रीमद्भगवतगीता, १०.५ ४. वही, १०.३४ ५. बही, १६. ३.
६. मनुस्मृति, ५.१०७ ७. विष्णुपुराण, (१.१.२०) ८. श्री मद्भागवत, (६.५.४४) ९. वाल्मीकि रामायण, बालकाण्ड, ३३.७ १०. वही, ३३.९
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