Book Title: Kshama ke Swar
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jain Shwetambar Shree Sangh Colkatta

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Page 19
________________ [ १४ ] दास ने दशधर्म रूपी कल्पवृक्ष की जड़ क्षमा को बताया है। इसकी साधना करके उपसर्गों और परीषहों पर विजय प्राप्त की जाती है।' 'कालुष्यानुत्पत्तिः क्षमा'--अपने परिणामों में कलुषता की उत्पत्ति न होना क्षमा है।' क्षमा का माहात्म्य बताते हुए रइधू कहते हैं कि उत्तम क्षमा तीन लोक में सारभूत है, जन्म-मरण रूप संसार से तारने वाली है। क्षमा रत्नत्रय ( सम्यक्-दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्-चारित्र ) को प्राप्त कराती है और दुर्गति के दुःखों का हरण करती है। क्षमा से अनेक गुण प्राप्त होते हैं । यह मुनियों को प्रिय है, ज्ञानीजनों के लिए चिन्तामणि के समान है। मनःस्थिरता पर इसकी प्राप्ति होती है। रइधू के मतानुसार क्षमा सब प्राणियों के द्वारा पूज्य है । यह मिथ्यात्व रूपी तिमिर को दूर करने के लिए मणि ( या दीपक ) के समान है। जहाँ असमर्थ पुरुषों के दोष क्षमा किए जाते हैं और उन पर रोष नहीं किया जाता है, जहाँ कठोर वचन सहन किये जाते हैं और चेतन के गण चित्त में धारण किये जाते हैं, वहाँ उत्तम क्षमा होती है, ऐसा जिनेन्द्र देव ने कहा है । एकदा भगवान महावीर के शिष्य गौतम ने उनसे प्रश्न पूछा कि भन्ते ! क्षमा करने से जीव को क्या प्राप्त होता है ? भगवान् ने उत्तर दिया कि क्षमा करने से वह मानसिक प्रसन्नता को प्राप्त करता है। मानसिक प्रसन्नता को प्राप्त हुआ व्यक्ति सब प्राण, भूत, जीव और सत्वों के साथ मैत्री-भाव उत्पन्न करता है। मैत्री-भाव को प्राप्त हुआ जीव भावना को विशुद्ध बनाकर निर्भय हो जाता है।" इसी तरह एक अन्य प्रश्नोत्तर में भगवान् ने गौतम को बताया कि क्षमा से परीषहों पर विजय प्राप्त की जाती है ।' कार्तिकेय स्वामी १. भूधरदासकृत वैराग्यभावना, (१) २. सर्वं यो सहते नित्यं, क्षमादेवीमुपास्य सः । पावत् जायते जित्वोपसर्गाश्च परीषहान् । उद्धृत-सम्यग्ज्ञान, दशलक्षणधर्माक, १९७८ पृष्ठ ३. ३. सर्वार्थसिद्धि, ९. ६. ४. ज्ञानपीठ पूजाञ्जलि, दशलक्षणपूजा, पृष्ठ १९३-१९४. ५. उत्तराध्ययनस,त्र २९. ७१. ६. वही, २९. ४६. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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