Book Title: Kavyaprakashkhandan
Author(s): Siddhichandragani
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 3
________________ किञ्चित् प्रास्ताविक महोपाध्याय सिद्धि चन्द्र ग णि विरचित, काव्य प्रकाश ख ण्ड न नामक प्रस्तुत ग्रन्थ सिंघी जैन ग्रन्थमाला के १० वें पुष्पके रूपमें प्रकाशित हो रहा है। संस्कृत साहित्यके अभ्यासियों में कामी र देश निवासी महाकवि मम्म ट का बनाया हुआ का व्य प्रकाश नामक, काव्यशास्त्रकी मीमांसाका प्रौढ ग्रन्थ, सुप्रसिद्ध है । संस्कृत साहित्यके प्रत्येक प्रौढ विद्यार्थीका यह एक प्रधान पाठ्य ग्रन्य है । विक्रमकी १२ वीं शताब्दीमें, सरखतीके धाम स्वरूप काश्मीर देशमें, इसकी रचना हुई और थोडे ही वर्षों में यह ग्रन्थ, भारतके सभी प्रसिद्ध विधाकेन्द्रोंमें, बड़ा आदरपात्र हो गया और सर्वत्र इसका पठन-पाठन शुरू हो गया। इस प्रन्यकी ऐसी हृदयंगमताका अनुभव कर, इस पर भिन्न भिन्न देशोंके भिन्न भिन्न विद्वानोंने, टीका-टिप्पणादिके रूपमें छोटी-बडी व्याख्याएं बनानी शुरू कर दी, जिनका प्रवाह बराबर आज तक चल रहा है । न जानें, आज तक कितने विद्वानोंने इस पर कितनी व्याख्याएं लिखी होंगी, और न जाने इनमेंसे कितनी ही लुप्त भी हो गई होंगी। महाराष्ट्रीय विद्वान् म. म. यामन झळकीकरने, ऐसी अनेक प्राचीन व्याख्याओंका समालोडन कर, जो एक विशद नूतन व्याख्या बनाई है उसकी प्रस्तावनामें इस ग्रन्थ पर लिखी गई बहुतसी प्रसिद्ध प्रसिद्ध व्याख्याओंकी सूचि दी है। उसके देखनेसे इस अन्धकी व्याख्यात्मिक रचनाओंकी संख्या आदिके विषयमें कुछ कल्पना हो सकती है । महाकवि मम्मट काश्मीरदेशीय शैव संप्रदायका अनुयायी था । पर उसकी यह कृति भारतके सभी संप्रदायोंमें समान रूपसे समाहत हुई है और इससे इस रचनाकी विशिष्टता एवं विवाप्रियताका भी महत्व समझा जा सकता है । नितान्त निवृत्तिमार्गीय जैन यतिजन, जो इस प्रकारके लौकिक वाङ्मयका प्रायः कम अध्ययन - मनन करते हैं और जो घोडे बहुत सार्वजनीन साहिलोपासकके नाते कुछ अध्ययनादि करते भी हैं तो वे विशेषतया अपने ही पूर्वीचार्यों की रची हुई कृतियोंका करते हैं। जैनेतर विद्वानोंकी कृतियोंका वैसा विशेष परिचय प्राप्त करनेमें उनका आकर्षण कम रहता है। पर मालूम देता है की मम्मटाचार्यका का व्य प्रकाश जैन यतिजनोंमें भी बहुत समादरका पात्र बना है और इसमें भी विशेष उल्लेख योग्य घटना यह है कि इस प्रन्य पर उक्तरूपसे जिन अनेकानेक विद्वानोंने, आज तक जो अनेकानेक व्याख्याएं बनाई हैं, उन सबमें पहली एवं प्रथम पंक्तिकी पाण्डित्यपूर्ण व्याख्या बनानेका सम्मान एक जैन यतिजन को प्राप्त हो रहा है; जिनने वि. सं. १२४६ में काव्य प्रकाश संकेत नामसे इसकी व्याख्या की है । काव्यप्रकाशकी सबसे प्राचीन हस्तलिखित पोथी भी जो अभीतक ज्ञात हुई है वह राजस्थान के जेसलमेर स्थित जैन ज्ञानभण्ड रमें सुरक्षित है ! यह पुस्तिका ताडपत्र पर, वि. सं. १२१५, में गुजरातकी पुरातन राजधानी अणहिलपुरमें, चौक्य चक्रवर्ती राजा कुमारपालके राज्यकाल में लिखी गई थी। [देखो सिंधी जैन प्रन्थ मालामें प्रकाशित और हमारा संपादित 'जन पुस्तक प्रशस्ति संग्रह'; पृ० १.०] काव्य प्रकाशकी इससे प्राचीन कोई अन्य पाथी कहीं शात नहीं है।

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