Book Title: Kavyamala
Author(s): Durgaprasad Pandit, Kashinath Pandurang Parab
Publisher: Nirnaysagar Press
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________________ 72 काव्यमाला। कर्म-भगवन् , कीदृशो ज्ञानशर्मणोपजापः / काला-वत्स, श्रूयताम् / तत्तत्कार्यविशेषसाधनविधावुक्त्वेतिकर्तव्यता जीवस्यास्य विभोः स्वकीयपृतनासंनाहमालोकितुम् / निष्क्रान्ते सचिवे कदाचन भजत्येकाकितां राजनि श्रुत्वा तत्समयं तदन्तिकभुवं स ज्ञानशर्मा ययौ // 7 // अनन्तरमायान्तमवलोक्य दूरादेव अथ सुचिरवियोगात्संदिहानः सखित्वे किमपि विवशचेता निर्भरैर्हर्षभारैः / कथमपि समुदश्रुर्बाप्पसंरुद्धकण्ठो वचनमिदमवोचन्मत्तहंसवरेण // 8 // चेतः शीतलतामुपैति नयने विस्तारिणी कौतुका__ निर्मर्यादमुपैत्यमानिव तनौ कोऽप्यन्तरानन्दथुः / बाहू मां परिरम्भणे त्वरयतस्त्वां वीक्ष्य कस्त्वं सखे पुण्यैः पूर्वकृतैश्चिरान्मम दृशोः पन्थानमारोहसि // 9 // कर्म-ततस्ततः / कालः–ततोऽसौ जीवस्य वचनमिदमाकर्ण्य ज्ञानशर्माकथयत् / सोऽहं जीव विभो चिरन्तनसखस्ते ज्ञानशर्मा तथा प्राणेष्वन्यतमो मुहुस्तव हिताकाङ्क्षी च सर्वात्मना / विज्ञानस्य कुमन्त्रितैः परवति त्वय्यव्यवस्थस्थितौ शान्तस्त्वन्नगराद्विरक्तहृदयः प्रास्थामनास्थावशात् // 10 // संप्रति हि। दुःसामाजिकबोधनैः कुपदवीसंचारमासेदुष स्तेनापज्जलधौ निराश्रयतया राज्ञो वृथा मज्जतः / ब्रूते यो न हितं वचोऽप्रियमपि स्वेष्टं निगृह्याग्रहा स्वामिभ्यः स तु बुद्धिमत्पशुरिति प्राप्नोति मन्त्री प्रथाम् // 11 //
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